Mauni Amavasya 2024 Vrat Katha: मौनी अमावस्या के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, बनी रहेगी विष्णु जी की कृपा

Last Updated 08 Feb 2024 01:08:39 PM IST

Mauni Amavasya 2024 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या मनाई जाती है। वहीं इस साल दिनांक 09 फरवरी को मौनी अमावस्या मनाई जाएगी।


Mauni Amavasya 2024 Vrat Katha

हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का बहुत ही विशेष महत्व है। माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन विष्णु भगवान, शिव जी के साथ पीपल के पेड़ की पूजा - पाठ की जाती है। मौनी अमावस्या का शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन स्नान करना बहुत शुभ माना गया है। ऐसा मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन संगम तट पर और गंगा में सभी देवी- देवताओं का वास रहता है, जिससे गंगा में स्नान करना ज़्यादा फलदायी होता है। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के साथ - साथ दान भी करना चाहिए। अन्न, धन, वस्त्र, तिल आदि चीजों का दान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है और भगवान विष्णु का आर्शीवाद मिलता है। इस दिन अपने मुख से किसी को भी कटु शब्द न बोले। मौनी अमावस्या पर विष्णु भगवान और शिव भगवान दोनों की पूजा का विधान है।  

Mauni Amavasya 2024 Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम देवस्वामी था और उसकी पत्नी धनवती और पुत्री गुणवती थी। ब्राह्मण के 7 पुत्र भी थे। देवस्वामी ने अपने सभी पुत्रों का विवाह कर दिया और फिर पुत्री के विवाह के लिए वर की तलाश के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेज दिया।

देवस्वामी ने अपनी बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी से दिखाई तो ज्योतिषी ने कहा कि विवाह के समय सप्तपदी होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी। यह सुनकर ब्राह्मण दुखी हो गया, उसने उपाय पूछा। ज्योतिषी ने कहा कि इसका उपाय सिंहलद्वीप निवासी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा -अर्चना करने से ही संभव होगा।

तभी देवस्वामी ने अपने सबसे छोटे बेटे और पुत्री को सोमा धोबन को घर लाने के लिए सिंहलद्वीप भेज दिया। दोनों भाई - बहन समुद्र तट पर पहुंचे, लेकिन समुद्र को पार नहीं कर पाए और भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस वट वृक्ष पर एक गिद्ध का पूरा परिवार रहता था।

भाई - बहन को परेशान देखकर गिद्ध के बच्चों ने अपनी मां को ये सारी बात बताई।  गिद्धनी को ये सारी बात सुनकर दया आ गई और वो उन दोनों भाई-बहन के पास गई और कहा कि तुम दोनों की भोजन कर लो। मैं सुबह होते ही तुम दोनों को समुद्र पार कराकर सोमा के पास पहुंचा दूंगी।

सुबह होते होते गिद्धनी ने उन दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया।
फिर वे सोमा धोबिन को घर लेकर आए और उसकी पूजा - अर्चना की, जिसके बाद गुणवती का विवाह हुआ। सप्तपदी होते ही गुणवती के पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने गुणवती को अपने पुण्य का फल दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो उठा।

इसके बाद सोमा उन दोनों को आशीर्वाद देकर सिंहलद्वीप चली गई। सोमा का पुण्य चले जाने से उसके दामाद, पुत्र और पति की मृत्यु हो गई। तब उसने एक नदी के किनारे स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे विष्णु भगवान की पूजा की और पीपल की 108 बार परिक्रमा की।

ऐसा करने से उसका पति, पुत्र और दामाद फिर से जीवित हो उठे। निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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