Guru Pradosh Vrat Katha : शिव भगवान का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो पढ़ें गुरु प्रदोष व्रत कथा

Last Updated 26 Oct 2023 08:40:08 AM IST

Guru Pradosh Vrat Katha : भगवान शंकर को खुश करने के लिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं। इस दिन विधि - विधान से पूजा करके व्रत कथा का पाठ किया जाता है। ऐसा करने से शंकर जी प्रसन्न होते हैं और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं।


Guru Pradosh Vrat Katha : पंचांग के अनुसार आज 26 अक्टूबर 2023, को आश्विन माह का प्रदोष व्रत है। हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक प्रदोष व्रत होता है जिसमें शंकर भगवान और मां पार्वती की पूजा - अर्चना की जाती है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। अपनी मनोकामना पूरी करने करने के लिए कोई भी स्त्री इस व्रत को कर सकती है। यह भगवान शिव के सबसे फलदायक व्रतों में से एक है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। अगर आप भी गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat Katha) रख रहे हैं तो ध्यान रखें कि पूजा के साथ व्रत कथा जरूर पढ़ें।  

प्रदोष व्रत कथा - Guru Pradosh Vrat Katha
प्राचीन समय में एक ब्राम्हणी रहती थी, जो पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर घर आ रही थी तो रास्ते में उसे दो बालक दिखे, जिन्हें वह अपने घर पर ले आई।

जब वे दोनों बालक बड़े हो गए तो ब्राह्मणी दोनों बालक को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम चली गई। जहां ऋषि शांडिल्य ने अपनी शक्तियों से उन बच्चों के बारे में पता लिया और  ब्राह्मणी को बताया कि हे देवी, ये दोनों बालक विदर्भ राज के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाठ छिन गया है।

इसके बाद ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधि-विधान से प्रदोष व्रत किया। फिर एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। तब अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों का विवाह कर दिया। 

फिर दोनों राजकुमार ने एक दिन गंदर्भ पर हमला कर दिया और उनकी विजय हुई। बता दें कि इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजकुमारों की काफी मद्द की थी। दोनों राजकुमारों को अपना सिंहासन फिर से वापस मिल गया और गरीब ब्राम्हणी को भी महल में एक खास स्थान दिया गया, जिससे उनके सारे दुख खत्म हो गए। राज-पाठ वापस मिलने का कारण प्रदोष व्रत था, जिससे उन्हें संपत्ति मिली और जीवन में खुशहाली आई। बस तभी से इस व्रत को किया जाने लगा।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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