Santoshi mata vrat katha : शुक्रवार के दिन पढ़ें संतोषी माता की व्रत कथा, होगा जीवन में सुख - शांति का वास

Last Updated 06 Oct 2023 07:35:02 AM IST

शुक्रवार के दिन संतोषी माता का व्रत रखने वाले भक्तजनों का व्रत संतोषी माता की कथा के बिना अधूरा है। आज हम आपके लिए संतोषी माता की कथा लेकरआए हैं।


Santoshi mata vrat katha

Santoshi mata vrat katha - शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार के दिन अगर कुंवारी कन्या संतोषी मां की पूजा - अर्चना सच्चे मन से कर ले तो उन्हे मनचाहा पति मिलता है। शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत कर कन्याओं को खिलाने से अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी संतोषी माता का व्रत करते हैं, तो आप संतोषी माता की कथा ज़रुर पढ़ें।  

संतोषी माता की व्रत कथा - Santoshi mata vrat katha
एक बुढ़िया थी जिसका मात्र एक ही पुत्र था। पुत्र के विवाह के पश्चात् बुढ़िया अपनी बहू से घर का सारा काम करवाती थी लेकिन उसे ठीक से खाना नहीं देती। यह देखकर भी बुढ़िया का पुत्र उससे कुछ नहीं कहता था। उसकी बहू दिन भर खाना बनाती, साफ सफाई करती, कपड़े तथा बर्तन धोती आदि घर के कामों उसका पूरा दिन बीत जाता था। एक दिन उस बुढ़िया का लड़का उसके पास जाकर बोला कि मैं परदेस जा रहा हूं। बुढ़िया को यह बात अच्छी लगी। उसने उसे जाने के लिए अनुमति दे दी। इसके बाद वह लड़का अपनी पत्नी के पास गया और उससे बोला कि मैं परदेस जा रहा हूं। तुम्हारी कोई निशानी मुझे दे दो। इस पर पत्नी ने कहा कि मेरे पास आपको देने के के लिए कुछ भी नहीं है और रोते हुए उसके चरणों में गिर पड़ी। इससे उसके हाथ में लगे गोबर की छाप पति के जूतों पर बन गई।

लड़के के जाने के बाद बुढ़िया के अपनी बहू पर अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते चले गए। एक दिन उसकी बहू अधिक परेशान हो गई और दुखी होकर घर से निकल गई। एक मंदिर में पहुंची तो वहां उसने देखा कि बहुत सी स्त्रियां पूजा कर रही हैं। उसने इन सभी से इस पूजा के विषय में पूछा तो वे सब बोली कि "यह संतोषी माता की व्रत की पूजा है, जिससे सभी कष्टों का निवारण होता है।" उन्होंने उसे बताया कि "शुक्रवार के दिन स्नान आदि करने के बाद एक लोटे में शुद्ध जल लें, गुड़ चने का प्रसाद लें तथा संतोषी माता का श्रृद्धा भक्ति से पूजन करें। एक वक्त का भोजन करना है तथा खटाई ना खानी है और ना किसी को देनी है।'

यह सब सुनकर वह घर वापस आकर संयम से प्रत्येक शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत करने लगी। देवी संतोषी माता की कृपा से कुछ दिनों बाद उसके पति का पत्र मिला तथा कुछ धन भी प्राप्त हुआ। प्रसन्न होकर उसने पूर्ण भाव से संतोषी माता की आराधना की और मंदिर की अन्य स्त्रियों में भी उनकी कृपा का गुणगान किया। बहू ने संतोषी माता से प्रार्थना की अब जब मेरे पति घर वापस लौट आएंगे मैं तब आपके व्रत का विधि विधान सहित उद्यापन करूंगी। जिसके साथ ही एक रात संतोषी माता ने उसके पति के स्वप्न में प्रश्न किया तुम घर क्यों नहीं जाते हो? तो वह बोला कि अभी सेठ का सारा माल बिका नहीं है और इस कारण रुपया भी नहीं मिला है। अगले दिन उस लड़के ने अपने स्वप्न के बारे में सब बताया लेकिन सेठ ने उसे घर जाने से इंकार कर दिया। अगले ही दिन संतोषी माता की कृपा से कई व्यापारी आए और सेठ का सारा माल खरीद कर ले गए। सारा रुपया भी वापस मिल गया जिसके चलते साहूकार ने उसके पति को घर वापस जाने को कह दिया।

घर वापस लौट कर बेटे ने अपनी मां तथा पत्नी को धन दिया। इसके बाद उसकी पत्नी ने उससे संतोषी माता के व्रत के उद्यापन की बात कही। जिसके बाद उसने स्त्रियों को उद्यापन हेतु आमंत्रित किया। लेकिन इसी बीच उसके पड़ोस की एक महिला उसके सुख शांति को देख ईर्ष्या करने लगी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि जब खाना खाने बैठो तो खटाई मांगना।
अगले दिन उद्यापन के समय जब बच्चे खाना खाने बैठे तो खटाई की मांग करने लगे। जिस पर उसने रुपए देकर बहलाया। लेकिन उस रुपए से बच्चों ने बाहर जाकर इमली खटाई खा ली। जिसके बाद उसका जीवन पुनः क्लेशों से भरने लगा। लेकिन फिर किसी ने बताया कि बच्चों ने तुम्हारे रुपए से इमली खटाई खाई थी। फिर बहू पुनः संतोषी माता के व्रत उद्यापन का संकल्प लेती है। जिसके बाद बहू ने विधि विधान सहित संतोषी माता का उद्यापन किया और उसकी कोख एक सुंदर पुत्र से भर गई। अंततः संतोषी माता की कृपा से बहू उसका पुत्र, पति तथा बुढ़िया खुशी खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।

जय संतोषी माता।।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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