Anant Chaturdashi 2023: दुख दरिद्रता को दूर करने के लिए करें अनंत चतुर्दशी का व्रत

Last Updated 24 Sep 2023 01:35:48 PM IST

इस साल (Anant Chaturdashi 2023 Date) अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 को है। ये दिन श्रीहरि को समर्पित हैं। कहते हैं अनंत चतुर्दशी की कथा सुनने मात्र से सारे दुख दूर हो जाते हैं।


Anant Chaturdashi Puja Vidhi

Anant Chaturdashi kab hai 2023 - अनंत चतुर्दशी का व्रत हिन्दू मास की भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु ने अनंत अवतार धारण किए थे। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत अवतारों की विधि विधान सहित पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंनत चतुर्दशी के व्रत का महत्व द्वापर युग का है। पुराणों के अनुसार,जब पांडवों ने अपना सारा राजपाट जुए में हरा दिया था। तब श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सलाह दी। श्री कृष्ण ने कहा था यदि अनंत चतुर्दशी का व्रत विधि विधान सहित किया जाएगा तो तुम्हारा सारा राजपाट वापस आ जाएगा। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से पांडवों को उनका राज्य वापस मिला था। इस साल (Anant Chaturdashi 2023 Date) अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 को है। ये दिन श्रीहरि को समर्पित हैं। कहते हैं अनंत चतुर्दशी की कथा सुनने मात्र से सारे दुख दूर हो जाते हैं।

अनंत चतुर्दशी 2023 मुहूर्त (Anant Chaturdashi 2023 Muhurat)
अनन्त चतुर्दशी, 28 सितम्बर 2023
अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त - 06:13 ए एम से 06:49 पी एम
अवधि - 12 घण्टे 36 मिनट्स

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा - Anant Chaturdashi Vrat Katha in hindi
प्राचीन समय में सुमंत नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्म पत्नी का नाम दीक्षा था। इन दोनों ब्राह्मण दंपतियों के पास एक अद्भुत सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका शुभ नाम सुशीला था। जब उनकी पुत्री सुशीला थोड़ी बड़ी हुई तब उनकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। अपनी पत्नी की मृत्यु के उपरांत सुमंत ने दूसरा विवाह कर लिया जिसका नाम कर्कशा था। अपने नाम के साथ इनका स्वभाव भी बेहद कर्कश था। इसके साथ ही ब्राह्मण सुमंत ने अपनी कन्या सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। कन्या की विदाई के समय कर्कशा ने अपने दामाद को ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर उपहार के रूप में दे दिए। कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी सुशीला के साथ अपने आश्रम की ओर निकल पड़े। आधे रास्ते में ही शाम ढलने लगी और ऋषि नदी के किनारे संध्या वंदन करने लगे। इसी बीच सुशीला देखती हैं कि कुछ बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही थीं। सुशीला ने महिलाओं के पास जाकर पूछा कि वे किस देव की प्रार्थना कर रही हैं, उनका उत्तर देते हुए लोगों ने उन्हें भगवान अनंत की पूजा करने और  इस व्रत रखने के महत्व के बारे में बताया। व्रत के महत्व के विषय में सुनने के बाद सुशीला ने उसी क्षण उस व्रत का पालन किया और हाथ में 14 गांठों का एक डोरा बांधकर अपने पति ऋषि कौंडिन्य के पास चली गई।

ऋषि ने सुशीला के बाह में बंधे डोरे के विषय में पूछा तो उन्होंने सब बात बता दी लेकिन ऋषि ने यह सब कुछ मानने से मना कर दिया और उस पूजा के पवित्र धागे को उनके पास से निकालकर अग्नि में फेंक दिया। इसके तत्पश्चात् ही उनकी सारी संपत्ति जो थी वो नष्ट हो गई और वह दंपति गरीबी से परेशान रहने लगे। जिस पर उन्होंने अपनी पत्नी से इसका कारण पूछा तो सुशीला ने अपने पति को अनंत भगवान का डोरा जलाने वाली बात याद दिलाई। जिसके पश्चाताप के लिए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे को ढूंढने वन में चले गए। जहां वह कई दिनों तक भटकते रहे और एक दिन हतोत्साहित होकर वन में ही भूमि पर गिर पड़े। ऋषि दंपतियों के पश्चाताप के दिनों में एक दिन अनंत भगवान प्रकट होकर बोले, "हे कौंडिन्य! तुम्हें स्मरण है कि तुमने मेरा अपमान किया था, जिस कारण तुम्हें अब कष्टों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन अब तुमने पश्चाताप कर लिया है अब मैं तुमसे प्रसन्न हूं, जाओ, जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। अपने जीवन में 14 वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारा समस्त दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य, संपत्ति से पहले की तरह संपन्न हो जाओगे।" ईश्वर के अनुसार ही कौंडिन्य ने व्रत किया तथा अपने जीवन के समस्त कलेशों से मुक्ति पाई। यही अंनत चतुर्दशी की कथा पौराणिक काल से प्रचलित है। हर भक्त अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर विधि पूर्वक कथा को गाते अथवा सुनते हैं।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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