विधेयात्मक चिन्तन

Last Updated 02 Jun 2022 12:32:06 AM IST

जो होगा सो देखा जाएगा’, किसान यह नीति अपना कर फसलों की देखरेख करना छोड़ दे, निराई-गुड़ाई करने की व्यवस्था न बनाए, खाद-पानी देना बंद कर दे तो फसल के चौपट होते देर न लगेगी।


श्रीराम शर्मा आचार्य

व्यवसाय में व्यापारी बाजार भाव के उतार-चढ़ाव के प्रति सतर्क न रहे तो उसकी पूंजी के डूबते तनिक देर न लगेगी। सीमा पर प्रहरी रात-दिन पूरी मुस्तैदी के साथ सीमा पर डटे रहते हुए चहल-कदमी करते रहते हैं। सुरक्षा की चिन्ता वे न करें तो दुश्मन-घुसपैठियों से देश को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

मनीषी, विचारक, समाज सुधारक, देशभक्त, महापुरु ष का अधिकांश समय विधेयात्मक चिंतन में व्यतीत होता है। उन्हें देश, समाज, संस्कृति की ही नहीं, समस्त मानव जाति के उत्थान की चिन्ता होती है। सार्वजनिन तथा सर्वतोन्मुखी प्रगति के लिए वे योजना बनाते और चलाते हैं। यह विधेयात्मक चिन्ता ही है, जिसकी परिणति रचनात्मक उपलब्धियों के रूप में होती है। मानव जीवन वस्तुत: अनगढ़ है। पशु-प्रवृत्तियों के कुसंस्कार उसे पतन की ओर ढकेलने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं।

उनकी अभिप्रेरणा से प्रभावित होकर इन्द्रियों को मनमानी बरतने की खुली छूट दे दी जाए तो सचमुच ही मनुष्य पशुओं की श्रेणी में जा बैठेंगे, पर यह आत्म गरिमा को सुरक्षित रखने की चिन्ता ही है, जो मनुष्य को पतन के प्रवाह में बहने से रोकती है। मानवी काया में नरपशु भी होते हैं, जिनका कुछ भी आदर्श नहीं होता, परन्तु जिनमें भी महानता के बीज होते हैं, वे उस प्रवाह में बहने से इनकार कर देते हैं। सुरक्षा प्रहरी की तरह वे स्वयं की प्रवृत्तियों के प्रति विशेष जागरूक होते हैं। हर विचार का, मन में आए संवेगों का वे बारीकी से परीक्षण करते हैं तथा सदैव उपयोगी चिन्तन में अपने को नियोजित करते हैं।

चिन्ता करना मनुष्य के लिए स्वाभाविक है। एक सीमा तक वह मानवी विकास में सहायक भी है। पशुओं का जीवन तो प्रवृत्ति तथा प्रकृति प्रेरणा से संचालित होता है। शिश्नोदर जीवन वे जीते तथा उसी में आनन्द अनुभव करते हैं किन्तु मनुष्य की स्थिति भिन्न है। मात्र इन्द्रियों की परितृप्ति से उसे सन्तोष नहीं हो सकता, और होना भी नहीं चाहिए क्योंकि उसके ध्येय उच्च स्तर के हैं। उनकी प्राप्ति के लिए उसे स्वेच्छापूर्वक संघर्ष का मार्ग वरण करना पड़ता है। यह मनुष्य के लिए गौरवमय होने की बात भी है कि वह अपनी यथास्थिति पर सन्तुष्ट न रहे। सतत प्रयत्नशील रहे।



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