सच्चा पश्चाताप

Last Updated 12 May 2022 12:03:38 AM IST

कोरे कागज पर काली स्याही के अक्षर छपाकर इस माध्यम द्वारा हम अपने हृदयगत भावों को आपकी अंत:चेतना में उड़ेलने का प्रयत्न कर रहे हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

हमारा लिखना और आपका पढ़ना नि:स्सार है, यदि किसी कर्म प्रवृत्ति के लिए इससे प्रेरणा न मिले। आज इस पुस्तक को साक्षी बनाकर हम-आप हृदय से हृदय का वार्तालाप कर रहे हैं।  आपके विचार इस समय एकांत की शांति में हैं। इस अवसर पर हम अपनी समस्त सद्भावनाओं को एकत्रित करके, आपके सच्चे हित चिंतन से प्रेरित होकर, घुटने टेक कर विनयपूर्वक यह प्रार्थना कर रहे हैं कि बंधु जीवन की अमूल्य घड़ियों का महत्त्व समझो, सुर दुर्लभ मानव जीवन को यो ही बर्बाद मत करो, नरक की यातना में मत तपो, यह बिल्कुल आपके हाथ की बात है कि आज के अव्यस्थित जीवन को स्वर्गीय आनंद से परिपूर्ण बना लें। पिछले दिनों आपसे गलतियां हो चुकी हैं, तो  इसके लिए न तो लज्जित होने की जरूरत है, और न ही दु:खी, या निराश होने की। सच्चा पश्चाताप तो यह है कि गलती की पुनरावृत्ति न होने दी जाए।

बुरे भूतकाल को यदि आप नापसंद करते हैं, और अच्छे भविष्य की आशा करते हैं, तो वर्तमान काल का सुव्यवस्थित रीति से निर्माण करना आरंभ कर दीजिए। वह शुभ आज ही है, अब ही है, इसी क्षण ही है जबकि अपने चिर संचित सद्ज्ञान को कार्य रूप में लाना चाहिए। अब आप इसके लिए तत्पर हो जाइए कि उत्तम श्रेणी का, उच्च कोटि का, सुणों से परिपूर्ण जीवन बिताते हुए इस लोक और परलोक में दिव्य आनंद का उपभोग करेंगे। सात्विक जीवन में प्रवेश पाने के लिए आप अच्छे गुणों को अपने भीतर धारण करने का प्रयत्न अभी से आरंभ कर दीजिए।

विनय, नम्रता, मुस्कुराहट, प्रसन्नता, मधुर भाषण, प्रेमभाव और आत्मीयता-ये सब निस्संदेह प्रशंसनीय गुण हैं, यदि आपके भीतर पुराने दुर्भावों के संचित संस्कार भरे हैं, और वे मन ही मन झुंझलाहट, क्रोध और स्वार्थ जैसी निम्न कोटि की आदतों को भड़काते रहते हैं, तो हताश कतई मत हूजिए। बाहरी मन से ही सही, बनावट से ही सही, इन गुणों को नकली तौर से प्रकट करना आरंभ कीजिए। मन में चिड़चिड़ाहट हो, भीतर ही भीतर क्रोध आ रहा हो, इतने में कोई बाहर का आदमी आता है तो आप भीतर की वृत्तियों को बदल दीजिए और चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएं प्रकट करिए, मुस्कुराइए और हंसते हुए उसका अभिवादन कीजिए।



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