अध्यात्म और विज्ञान
आज आधुनिक विज्ञान अपने उपकरणों की मदद से आपको और बेहतर देखने की क्षमता देता है, और कह रहा है कि आसमान में खरबों तारे हैं।
सद्गुरु |
क्या आपको पता है कि विज्ञान ने सिर्फ आपके चेहरे की त्वचा पर ही अठारह खरब जीव खोज निकाले हैं? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपना चेहरा कितनी बार साफ करते हैं, ये वहीं रहते हैं। तो विज्ञान आपको किसी चीज के जितना करीब लेकर जाता है, उतना ही चीजें पहले से ज्यादा जटिल होती जाती हैं। जाहिर है कि इससे स्पष्टता नहीं आती। दरअसल, विज्ञान का जो महत्त्व मिला है, तकनीक की वजह से मिला है। आप तकनीक का आनंद ले रहे हैं, लेकिन तकनीक विज्ञान नहीं है, एक नतीजा भर है।
चूंकि आप इस तकनीक के फायदों का आनंद ले रहे हैं, इसलिए आप विज्ञान के साथ हैं। मान लीजिए, तकनीक नहीं होती और केवल वैज्ञानिक ही होते जो आपको बताते कि आकाश में दो खरब तारे और आपके चेहरे पर अठारह खरब जीव हैं, तो आप उन्हें सिरे से खारिज कर देते। शुरू में ज्यादातर वैज्ञानिकों को ऐसे ही मार दिया गया क्योंकि लोगों को लगता था कि वे पागल हैं, ऐसी बातें बता रहे हैं जो कोई और देख ही नहीं सकता। चूंकि विज्ञान और वैज्ञानिक आपको कई सारे गैजट्स या और भी बहुत सारी चीजें दे रहे हैं, इसलिए आप उन्हें इज्जत देते हैं। तकनीक नहीं होती तो कोई भी वैज्ञानिकों को महत्त्व नहीं देता। दरअसल, लोगों को बस इससे मतलब होता है कि उन्हें क्या मिलने वाला है।
तो सृष्टि को कई तरह से खंगालने की कोशिशों से चीजें आसान नहीं हो रही हैं, बल्कि जटिल होती जा रही हैं। जैसे-जैसे हमें शरीर की हर कोशिका के बारे में पता चला, हमें लगा कि हम इंसान को पूरी तरह समझ गए हैं, लेकिन अब हमें अहसास हो रहा है कि हम शरीर के एक अणु को भी नहीं समझ सकते। यही सच है। तो विज्ञान आपको इस ब्रह्मांड की बारीकियों से तो अवगत करा रहा है, लेकिन चीजों में स्पष्टता नहीं ला रहा, बल्कि उन्हें और ज्यादा जटिल बना रहा है।
तो रहस्यवाद या अध्यात्म कुछ और नहीं है। बस इतना है कि हम चीजों को दूसरे नजरिए से देख रहे हैं। यह भी वही है, जानने की चेष्टा। अध्यात्म और विज्ञान, दोनों ही ज्ञान पाने के मार्ग हैं, दोनों की चेष्टा जानने की है।
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