मोह का नशा
मोह एक नशा है। जैसे नशे में डूबा हुआ कोई आदमी चलता है, डगमगाता है; पक्का पता भी नहीं कि कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है; चलता है बेहोशी में, ऐसे तुम चलते रहे हो।
आचार्य रजनीश ओशो |
कितना ही तुम सम्हालो अपने पैरों को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी शराबी सम्हालने की कोशिश करते हैं। तुम अपने को भला धोखा दे दो, दूसरों को कोई धोखा नहीं हो पाता। सभी शराबी कोशिश करते हैं कि वे नशे में नहीं है; जितनी कोशिश करते हैं, उतना ही प्रगट होता है। और, यह मोह नशा है। और जब मैं कहता हूं कि मोह नशा है, तो बिल्कुल रासायनिक अथरे में कहता हूं कि मोह नशा है। मोह की अवस्था में तुम्हारा पूरा शरीर नशीले द्रव्यों से भर जाता है वैज्ञानिक अथ्रे में भी।
जब तुम किसी एक सी के प्रेम में गिरते हो तो तुम्हारे पूरे शरीर का खून विशेष रासायनिक द्रव्यों से भर जाता है। वे द्रव्य वही हैं जो भांग में, गांजे में, एल. एस. डी. में हैं। इसलिए अब जिसके तुम प्रेम में पड़ गए हो, वह सी अलौकिक दिखाई पड़ने लगती है। वह सी फीकी नहीं मालूम होती। जिस पुरुष के प्रेम में तुम पड़ जाओ, वह पुरुष इस लोक का नहीं मालूम पड़ता। नशा उतरेगा, तब वह दो कौड़ी का दिखाई पड़ेगा। जब तक नशा है..! इसलिए तुम्हारा कोई भी प्रेम स्थायी नहीं हो सकता क्योंकि नशे की अवस्था में किया गया है।
वह मोह का स्वरूप है। होश में नहीं हुआ है, बेहोशी में हुआ है। इसलिए हम प्रेम को अंधा कहते हैं। प्रेम अंधा नहीं है, मोह अंधा है। हम भूल से मोह को प्रेम समझते हैं। प्रेम तो आंख है; उससे बड़ी कोई आंख नहीं है। प्रेम की आंख से तो परमात्मा दिखाई पड़ जाता है इस संसार में छिपा हुआ। मोह अंधा है; जहां कुछ भी नहीं है वहां सब कुछ दिखाई पड़ता है। मोह एक सपना है। और, जिनको हम योगी कहते हैं, वे भी इस मोह से पस्त होते हैं। सिद्धियां तो हल हो जाती हैं।
वे कुछ शक्तियां तो पा लेते हैं। शक्तियां पानी कठिन नहीं है। दूसरे के मन के विचार पढ़े जा सकते हैं, सिर्फ थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। दूसरे के विचार प्रभावित किए जा सकते हैं थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। आदमी आए तुम बता सकते हो कि तुम्हारे मन में क्या खयाल है। थोड़े ही उपाय करने की जरूरत है। यह एक विज्ञान है; धर्म का इससे कुछ लेना-देना नहीं। मन को पढ़ने का विज्ञान है, जैसे किताब को पढ़ने का विज्ञान है।
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