मीठी वाणी

Last Updated 11 Apr 2022 12:11:27 AM IST

व्यक्ति को पहचानने की एक ही कसौटी है कि उसकी वाणी घटिया है या बढ़िया।


श्रीराम शर्मा आचार्य

अशिष्टता छिप नहीं सकती। वाणी से पता चल ही जाती है। अनगढ़ता मिटाओ, दूसरों का सम्मान करना सीखो। तुम्हें प्रशंसा करना आता ही नहीं, मात्र निंदा करना आता है। व्यक्ति के अच्छे गुण देखो, उनका सम्मान करना सीखो। तुरंत तुम्हें परिणाम मिलना चालू हो जाएंगे। वाणी की विनम्रता का अर्थ चाटुकारिता नहीं है। दोनों नितांत भिन्न चीजें हैं।

दूसरों की अच्छाइयों की तारीफ करना, मीठी बोलना ऐसा सुण है, जो व्यक्ति को चुंबक की तरह खींचता और अपना बनाता है। दूसरे सभी तुम्हारे अपने बन जाएंगे, यदि तुम यह गुण अपने अंदर पैदा कर लो। इसके लिए अन्त: के अहंकार को गलाओ। अपनी इच्छा, बड़प्पन, कामना, स्वाभिमान को गलाने का नाम समर्पण है, जिसे तुमसे करने को मैंने कहा है और इसकी अनंत फलश्रुतियां सुनाई हैं।

अपनी इमेज विनम्र से विनम्र बनाओ। मैनेजर की, इंचार्ज की, बॉस की नहीं, बल्कि स्वयंसेवक की। जो स्वयंसेवक जितना बड़ा है, वह उतना ही विनम्र है, उतना ही महान बनने के बीजांकुर उसमें हैं। तुम सबमें वे मौजूद हैं। अहं की टकराहट बंद होते ही उन्हें अंदर टटोलो कि तुमने समर्पण किया है कि नहीं। हमारी एक ही महत्त्वाकांक्षा है कि हम सहस्रभुजा वाले सहस्रशीष्रा पुरुष बनना चाहते हैं। तुम सब हमारी भुजा बन जाओ, हमारे अंग बन जाओ, यह हमारे मन की बात है। गुरु -शिष्य एक-दूसरे से अपने मन की बात कह कर हल्के हो जाते हैं।

हमने अपने मन की बात तुमसे कह दी है। अब तुम पर निर्भर है कि तुम कितना हमारे बनते हो?

पति-पत्नी की तरह, गुरु  और शिष्य की आत्मा में भी परस्पर ब्याह होता है, दोनों एक-दूसरे से घुल-मिलकर एक हो जाते हैं। समर्पण का अर्थ है-दो का अस्तित्व मिटाकर एक हो जाना। तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो और अपनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षाओं को हमारी अनंत आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षाओं में विलीन कर दो। जिसका अहं जिंदा है, वह वेश्या है। जिसका अहं मिट गया, वह पवित्रता है। देखना है कि हमारी भुजा, आंख, मस्तिष्क बनने के लिए तुम कितना अपने अहं को गला पाते हो? इसके लिए निरहंकारी बनो। बेशक, स्वाभिमानी तो होना चाहिए, पर निरहंकारी बनकर। निरहंकारी का प्रथम चिह्न है वाणी की मिठास।



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