बुद्धिमत्ता
बुद्धिमान व्यक्ति परंपरावादी नहीं हो सकता, पुरानी चीजों की पूजा करता नहीं रह सकता; अतीत में कुछ भी पूजा योग्य नहीं है।
आचार्य रजनीश ओशो |
बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य का निर्माण करना चाहता है, और वर्तमान में जीना चाहता है। उसके वर्तमान में जीने का ढंग, उसके भविष्य के निर्माण का ढंग है। बुद्धिमान व्यक्ति अतीत से चिपक कर उसकी लाश को ढोता नहीं रहता। वे कितनी ही सुंदर हों, कितनी ही कीमती हों, वह लाशों को ढोता नहीं। अतीत जा चुका है और वह हमेशा के लिए जा चुका। लेकिन बुद्धिहीन परंपरावादी होता है, वह पुजारी का अनुकरण करने को सदैव तैयार रहता है, वह किसी मूर्ख राजनीतिज्ञ का अनुसरण करने को तैयार रहता है, किसी भी आज्ञा को मानने को तैयार रहता है। कोई भी व्यक्ति जो सत्ता में हो, वह उसके पांवों में गिरने को हमेशा ही तैयार रहता है।
बुद्धिमानी के बिना कोई प्रसन्नता नहीं हो सकती। व्यक्ति केवल तभी ही प्रसन्न हो सकता है, जब उसमें बुद्धिमत्ता हो, पूर्ण बुद्धिमत्ता। ध्यान तुम्हारी बुद्धिमत्ता को अभिव्यक्त करने का उपकरण है। तुम जितना ध्यान करते हो, उतने ही बुद्धिमान बनते हो। लेकिन यह स्मरण रहे, बुद्धिमत्ता से मेरा मतलब बौद्धिकता से नहीं है। बौद्धिकता मूर्खता का ही अंग है। बुद्धिमत्ता बिल्कुल ही एक अलग आयाम है, इसका मस्तिष्क से कोई संबंध नहीं है। बुद्धिमत्ता एक ऐसी चीज है जो तुम्हारे अंतरतम से आती है, जिसकी धारा तुमसे बहती है, और इससे तुम्हारे अंदर बहुत कुछ बढ़ने लगता है।
तुम प्रसन्न रहने लगते हो, तुम सृजनात्मक होने लगते हो, तुम विद्रोही होने लगते हो, तुम साहसी होने लगते हो, तुम असुरक्षा में रहना पसंद करने लगते हो, तुम अज्ञात में छलांग को तत्पर रहते हो। तुम खतरों में जीना शुरू कर देते हो, क्योंकि जीने का केवल यही ढंग है। मूखरे के लिए बड़े राजमार्ग होते हैं, जहां भीड़ चल रही हैं, और सदियों-सदियों वे उन पर चलते ही रहे हैं, और कहीं नहीं पहुंचते, घेरे में ही घूमते रहते हैं।
तब तुम्हें यह सोचने की सुविधा होती है कि तुम बहुत सारे लोगों के साथ हो, तुम अकेले नहीं हो। बुद्धिमत्ता तुम्हें अकेले होने का साहस देती है, और बुद्धिमत्ता तुम्हें सृजनात्मक होने की दृष्टि देती है। सृजनात्मक होने की महान प्रेरणा, प्रबल आकांक्षा पैदा होने लगती है। केवल तभी, उसके परिणामस्वरूप तुम प्रसन्न और आनंदित होते हो।
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