धर्म के नाम पर

Last Updated 22 Feb 2022 03:18:13 AM IST

बड़ा अनर्थ हुआ है धर्म के नाम पर, मंदिर, मस्जिद, चर्च के नाम पर, जितने पाप हुए, जितनी हिंसा हुई, जितनी हत्याएं हुई, जितने युद्ध हुए किसी और चीज के नाम पर नहीं हुए।


आचार्य रजनीश ओशो

मूढ़ राजनीतिज्ञों ने और धर्मो के अंधे ठेकेदारों ने, मुल्ला मौलवियों, पंडित-पुरोहितों, पादरियों और गुरु  घंटालों ने तुम्हें जितना लड़वाया उतना और किसने लड़वाया, जमीन खून से लथपथ हुई। दुनिया में 300 धर्म हैं और धर्मो के नाम पर राजनीति चलती है, शत्रुता चलती है, भेदभाव चलते हैं, युद्ध चलते हैं। आज दुनिया में धर्मो की जरूरत नहीं है, धार्मिंकता की जरूरत है और धार्मिंक व्यक्ति वही है जो दूसरों को समझे उसकी मदद करे। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे जाने से ही या शास्त्र पढ़ने से पूजने से ही व्यक्ति धार्मिंक नहीं हो जाता..इस दुनिया में न हिंदुओं की जरूरत है, न मुसलमानों की जरूरत है, न जैनों की, न बौद्धों की, न सिखों की, न ईसाईयों की जरूरत है।

इस दुनिया में तो सिर्फ  धार्मिंक लोगों की जरूरत है और धार्मिंक व्यक्ति राजनैतिक नहीं होता, धार्मिंक व्यक्ति सांप्रदायिक नहीं होता, धार्मिंक व्यक्ति किसी जाति, किसी भाषा, किसी भेषभूसा, किसी देश, किसी सीमा में आबद्ध नहीं होता। धार्मिंक व्यक्ति तो स्वतंत्र होता है, मुक्त होता है, प्रेमपूर्ण होता है, शांत होता है। तुम्हारा हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी होना सिर्फ मन का एक भ्रम है, खेल है इसका ये मतलब हरगिज नहीं कि तुम धार्मिंक हो। धार्मिंक व्यक्ति तो सभी तरह के भेदभाव, ऊंच-नीच, असमानताओं, घृणा, हिंसा, नफ़रत, शत्रुता, वैर से मुक्त होता है। लोगों के मस्तिष्क बिल्कुल खाली हो गए हैं।

खोखले हो गए हैं। उन्हें सदियों से खोखला किया गया है और खोखला करने की बड़ी वैज्ञानिक विधियां उपयोग की गई हैं। कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई सिख है, कोई ईसाई है, कोई जैन है, कोई बौद्ध है, कोई पारसी है। कोई कुछ है, तो कोई कुछ है। ये सब मानसिक विकृतियां हैं, बीमारियां हैं। पूरी दुनियां हजारों जातियों में बटी हुई है। खण्डों में विभाजित है और आपस में लड़-झगड़ रही हैं।

ये ब्राह्मण और शूद्र, क्षत्रीय और वैश्य, और हिंदू और मुसलमान, और जैन और बौद्ध, और सिख और ईसाई ये मौत के साथ जाने वाले नहीं, ये सब लेबिल जलकर राख हो जाएंगे, कब्रों में दफन होंगे। ये खोपड़ी की बीमारियां हैं। ये कोई स्वस्थ होने लक्षण नहीं हैं। वैर नर्क है। शत्रुता में जीना नर्क है। तुम जितनी शत्रुता अपने चारों तरफ बनाते हो, उतना तुम्हारा नर्क बड़ा हो जाता है।



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