आत्मभाव
आत्मभाव का प्रयास करिए। आसपास रूखी, उपेक्षणीय, अप्रिय वस्तुओं का रूप बिल्कुल बदल जाएगा।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
विज्ञ लोग कहते हैं कि अमृत छिड़कने से मुर्दे उठ पड़ते हैं। हम कहते हैं कि प्रेम की दृष्टि से अपने चारों ओर निहारिए मुर्दे सी अस्पृश्य और अप्रिय वस्तुएं सजीव और सर्वाग सुंदर बन कर आपके सामने आनंद नृत्य करने लगेंगी। कहा गया है कि पारस को छूकर काला-कलूटा लोहा बहुमूल्य भी सोना हो जाता है। हम कहते हैं कि सच्चे प्रेम का अरुचिकर और उपेक्षणीय से स्पर्श कराइए तो वे कुंदन के समान जगमगाने लगेगा।
दुनिया आपको काटने दौड़ती है, इसका कारण एक ही है कि आपके मन मानस में प्रेम का सरोवर सूख गया है, उसमें एकांत शून्यता की सांय-सांय बीत रही है, उसका डरावना अंदर से निकल कर बाहर आ खड़ा होता है, और दुनिया बुरी दिखने लगती है। जब कोई व्यक्ति दुनिया से बिल्कुल घबराया हुआ, चिढ़ा हुआ सामने आता है और संन्यासी हो जाने का विचार प्रकट करता है, तब हम उसके सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया करते हैं कि दोस्त, इस दुनिया में कुछ भी बुरा नहीं है। आओ, अपने पीलिया का इलाज करें और संसार के असली आनंददायी रूप में दशर्न करके शांति लाभ करें।
कुटिलता, अनुदारता, कंजूसी और संकीर्णता के स्थान पर सरलता और उदारता को विराजमान कीजिए। मुद्दतों से सूखे पड़े हृदय सरोवर को प्रेम के अमृत जल से भर लीजिए। इस सरोवर से लोगों को प्यास बुझाने दीजिए। क्रीड़ा करके आनंदित होने दीजिए। उदारतापूर्वक अपना प्रेम सबके लिए खुला रखिए। आत्मीयता की शीतल छाया में थके पथिकों को विश्राम करने दीजिए। प्रेम भूलोक का अमृत है, और आत्मभाव इसका पारस।
इस सुर दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनाना है, तो इन दोनों महातत्त्वों को उपार्जित करने से वंचित मत रहिए। अपने प्रेम रूपी अमृत को चारों ओर छिड़क दीजिए जिससे यह श्मशान सा भयंकर दिखाई पड़ने वाला जीवन देवी-देवताओं की क्रीड़ा भूमि बन जाए। अपने आत्मभाव रूपी पारस को कुरूप लोहा-लंगड से स्पर्श होने दीजिए जिससे स्वर्णमयी इंद्रपुरी बन कर खड़ी हो जाए। यह स्वर्ग सच्चे विश्वासियों और दृढ़ निश्चय वालों के लिए बिल्कुल सरल और सुसाध्य है। आपके हाथ में है कि इच्छा और प्रयत्न द्वारा जीवन में स्वर्ग का प्रत्यक्ष आनंद उपलब्ध करें।
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