विज्ञान और तर्क
विज्ञान महज एक तरीका है, एक विधि है एक ऐसा तरीका व विधि जो विसनीय (भरोसे के लायक) है।
सद्गुरु |
चलिए, विज्ञान के इस तरीके को समझते हैं। यूरोपीय पद्धति पर आधारित यह तरीका जो आगे चलकर आधुनिक विज्ञान का आधार बना, दरअसल कट्टर धार्मिंक परंपराओं के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। उन दिनों वे लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि ऐसी किसी भी चीज का अस्तित्व नहीं हो सकता, जो तार्किक तौर पर (लॉजिक के आधार पर) सही नहीं हो। तर्क के प्रति इस समर्पण के चक्कर में हमने जिंदगी के आनंद को खो दिया। मुझे लगता है कि आइंस्टाइन ने भी इसी से मिलती-जुलती बात कही थी, जो आप भी जानते होंगे। उन्होंने कहा था कि ‘अंतज्र्ञान एक उपहार है, एक पावन उपहार है, लेकिन तर्क एक भरोसेमंद नौकर है।’
अब हमने एक ऐसा समाज बना लिया है जो नौकर को सम्मान देता है, और पवित्र उपहार की उपेक्षा करता है। ये आइंस्टाइन के ही शब्द हैं, जिसको मैंने थोड़ा आसान बनाकर कह दिया है। पूरब के समाज में हमेशा से ऐसी ही सोच रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा आधार वैज्ञानिक नहीं है। मैं आपको दक्षिण भारत में, कर्नाटक के एक मंदिर के बारे में बताता हूं। यह मंदिर लगभग पंद्रह सौ साल पुराना है। वहां लोग इस बात पर विचार कर रहे थे कि कैसे एक बोरवेल बनाया जाए। पर अगर आप इस तरह का एक गड्ढा खोदते हैं, तो लगातार पानी मिल सकता है, लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर ऐसा किया तो जमीन को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसीलिए उन्होंने ऐसा न करने का फैसला किया।
उन्होंने एक ऐसे जहाज के डिजाइन के बारे में भी बात की, जो उड़ सके। फिर उन्होंने कहा कि अगर आपने इसे उड़ाया तो वायुमंडल में ईथर (आकाश तत्व) का स्तर बिगड़ जाएगा और इंसान अपना दिमागी संतुलन खो देगा, इसलिए हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। यह सब वहां के पत्थरों पर उस समय की भाषा में लिखा गया है। इस तरह का ज्ञान पश्चिमी देशों में नहीं था, क्योंकि वहां जो भी घटित हुआ, दरअसल वह कट्टर धार्मिंक परंपराओं के प्रति प्रतिक्रिया थी। इसलिए हमने तार्किक बुद्धि को बहुत ऊंचा मानना शुरू कर दिया। आप किस तरह की बुद्धि चाहते हैं-तेज या मंद? तेज ही चाहेंगे न?
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