संबंध
संबंध एक ढांचा है, प्रेम का कोई ढांचा नहीं है। तो प्रेम संबंधित तो अवश्य होता है, पर कभी संबंध नहीं बनता।
आचार्य रजनीश ओशो |
प्रेम एक क्षण-से-क्षण की प्रक्रिया है। स्मरण रखें। प्रेम तुम्हारे होने कि स्थिति है, वह कोई संबंध नहीं। ऐसे लोग हैं, जो प्रेम करते हैं और ऐसे भी जो प्रेम नहीं करते। जो लोग प्रेम नहीं करते वे संबंधों के माध्यम से प्रेममय होने का नाटक करते हैं। प्रेम करने वाले लोगों को संबंध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती-प्रेम पर्याप्त है।
एक प्रेम संबंध में पड़ने के बजाय तुम एक प्रेम करने वाले व्यक्ति बनो-क्योंकि संबंध एक दिन बनते हैं और अगले ही दिन मिट जाते हैं। वे फूलों के सामान हैं; सुबह खिलते हैं, और श्याम ढलते ही विदा हो जाते हैं। तुम एक प्रेममय व्यक्ति बनो, मंत्रा, परन्तु लोगों को प्रेममय व्यक्ति बनने में बहुत कठिनाई होती है, तो वे एक संबंध खड़ा कर लेते हैं-- और इस तरह से बेफकूफ बनाते है ‘मैं एक संबंध में हूं इसलिए मैं अब एक प्रेममय व्याक्ति हूं।’ और वह संबंध चाहे किसी पर एकाधिकार जमाने वाला, सबसे अलग कर देने वाला हो। हो सकता है वो संबंध बस किसी डर से बनाया गया हो, जिसका प्रेम से कुछ लेना-देना न हो।
हो सकता है संबंध मात्र एक सुरक्षा हो-आर्थिक या कोई और। संबंध की आवश्यकता केवल इसलिए होती है क्योंकि प्रेम नहीं है। संबंध एक विकल्प है। सचेत हो जाओ! संबंध प्रेम को नष्ट कर देता है, वह उसके जन्म की सारी संभावनाओं को नष्ट कर देता है। यदि तुम बिना ईष्र्या के प्रेम कर सकते हो, यदि तुम बिना लगाव के प्रेम कर सकते हो, यदि तुम किसी व्यक्ति को इतना प्रेम कर सको की उसकी प्रसन्नता तुम्हारी प्रसन्नता हो..भले ही वह किसी और स्त्री के साथ भी हो और प्रसन्न हो। यह तुम्हें भी प्रसन्न कर दे क्योंकि तुम उससे इतना प्रेम करती हो: उसकी खुशी तुम्हारी खुशी है।
तुम इसलिए खुश हो क्योंकि वह खुश है, और तुम उस स्त्री के प्रति अनुग्रहित होगी जिसने उस व्यक्ति को प्रसन्न किया जिसे तुम प्रेम करती हो--तुम ईष्र्या नहीं करोगी। तब प्रेम एक शुद्धता तक पहुंचा है। यह प्रेम किसी तरह का बंधन निर्मिंत नहीं करता। और यह प्रेम केवल, तुम्हारे ह्रदय के द्वार का खुलना है। यह थोड़ा विचित्र दिखता है; परन्तु हमें हमेशा यह सिखाया गया है कि प्रेम एक संबंध है, तो हम इस सोच के आदि हो गए हैं कि प्रेम एक संबंध है।
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