अपनापन

Last Updated 07 Feb 2022 12:26:22 AM IST

जो भी वस्तुएं आपके आसपास मौजूद हैं, उनमें से कुछ आपको अच्छी लगती हैं, कुछ बुरी, कुछ की ओर ध्यान भी नहीं जाता।


श्रीराम शर्मा आचार्य

जो अच्छी लगती हैं,  आप उनसे प्यार करते हैं, जो बुरी लगती हैं, उनसे घृणा। जो उपेक्षित हैं, उनकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते। आइए, विचार करें कि वस्तुओं के अच्छा लगने का क्या कारण है? कहना ठीक नहीं कि गुणवान वस्तुएं स्वभावत: प्रिय लगती हैं।

सच तो यह है कि जिस वस्तु में जितनी मात्रा में अपनापन-आत्मभाव, स्वार्थभाव है, वह उसी परिमाण में प्रिय लगती है, गुणरहित हो तो भी। आपका छोटा बालक है, रोना ही जानता है, दिन को रोता है, रात को रोकर नींद उचटा लेता है, गोदी में लें तो मल से कपड़ों को खराब कर देता है। उसमें एक भी गुण नहीं, दुर्गुण बहुत हैं, तो भी आप उसके लिए कपड़ों की, दूध की, दवा-दारू की खर्चीली व्यवस्था करते हैं, कष्ट उठाते हैं, फिर भी उसे प्यार करते हैं। कारण है कि उस बालक में आपका आत्मभाव है, अपनापन है। दूसरों के बच्चे आपके ऊपर टट्टी कर दें तो बुरा लगेगा।

पडोसी का गोरा, सलौना बच्चा, अपने काले-कलूटे बच्चे से अच्छा थोड़े ही लगेगा? यहां सौंदर्य या गुण की प्रमुखता नहीं है, अपनेपन का महत्त्व है। एक मकान के आप मालिक हैं, वह अच्छा लगता है, उसकी अच्छाई की प्रशंसा करते नहीं थकते, टूट-फूट की मरम्मत, सजावट का ध्यान रखते हैं, संयोगवश यह मकान बिक कर दूसरे के हाथ चला जाता है, अब आप निश्चित हो गए टूट-फूट से कोई मतलब नहीं, आज फूट जाए चाहे हजार वर्ष खड़ा रहे? कल तक जो मकान इतना प्रिय था, आज ही उससे सारा संबंध छूट गया। इतनी अधिक विरक्ति का कारण क्या है? कारण है कि कल तक उसके साथ जो अपनापन चिपटा हुआ था, आज नहीं रहा।

कल जिस रुपयों से भरी थैली को उत्साह से छाती से चिपटाए फिरते थे वह आज दूसरे व्यापारी के पास चली गई, यदि वे रु पए अब चोरी चले जाएं तो आपको कष्ट न होगा। उन रु पयों के बदले जो माल खरीदा है, वह अब प्यारा लगने लगा, कल वह माल भी पड़ोस में पड़ा था पर तब उसकी ओर आंख उठाकर भी न देखते थे, आज उसको सुरक्षित रखने के लिए चोटी का पसीना एड़ी तक बहा रहे हैं। माल वही कल था, वही आज है। अंतर केवल इतना कि आज अपना हो गया, अपनापन ही तो अच्छा लगने का कारण है।



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