मुक्त होने की भावना

Last Updated 01 Feb 2022 02:06:57 AM IST

एक और मित्र ने पूछा है कि आपने कहा कि व्यक्ति जैसा भाव करता है, वैसा ही बन जाता है। तो क्या मुक्त होने के भाव को गहन करने से वह मुक्त भी हो सकता है?


आचार्य रजनीश ओशो

कभी भी नहीं। क्योंकि मुक्त होने का अर्थ ही है, भाव से मुक्त हो जाना। इसलिए संसार में सब कुछ हो सकता है भाव से, मुक्ति नहीं हो सकती। मुक्ति संसार का हिस्सा नहीं है। भाव है संसार का विस्तार या संसार है भाव का विस्तार। तो आप जो भी भाव से चाहें, वही हो जाएंगे। स्त्री होना चाहें, स्त्री; पुरुष होना चाहें, पुरु ष; पशु होना चाहें, पशु; पक्षी होना चाहें, पक्षी; स्वर्ग में देवता होना चाहें तो, नरक में भूत-प्रेत होना चाहें तो, जो भी आप होना चाहे  मुक्ति को छोड़कर,आप अपने भाव से होते हैं और हो सकते हैं। मुक्ति का अर्थ ही उलटा है। मुक्ति का अर्थ है कि अब हम कुछ भी नहीं होना चाहते। अब जो हम हैं, हम उससे ही राजी हैं। अब हम कुछ होना नहीं चाहते हैं। जब तक आप कुछ होना चाहते हैं, तब तक आप जो हैं, उससे आप राजी नहीं हैं। कुछ होना चाहते हैं। गरीब अमीर होना चाहता है; स्त्री पुरु ष होना चाहती है; दीन धनी होना चाहता है। कुछ होना चाहते हैं। पशु पुरु ष होना चाहता है, पुरु ष स्वर्ग में देवता होना चाहता है, लेकिन कुछ होना चाहते हैं, कुछ होना चाहते हैं।

होना चाहने का अर्थ है कि जो मैं हूं उससे मैं राजी नहीं हूं; मैं कुछ और होना चाहता हूं। और जो आप हैं, वही आपका सत्य है। और जो भी आप होना चाहते हैं, वह झूठ है। भाव से झूठ पैदा हो सकते हैं, सत्य पैदा नहीं होता। सत्य तो है ही। इसलिए सभी भाव असत्य को जन्माते हैं। सारा संसार इसीलिए माया है, क्योंकि वह भाव से निर्मिंत है। आप जो होना चाहते हैं, वह हो जाते हैं। जो आप हैं, वह तो आप हैं ही। वह इस होने के पीछे दबा पड़ा रहता है। जैसे राख में अंगारा दबा हो, ऐसे आपके होने में, बिकमिंग में आपका बीइंग, आपका अस्तित्व दबा रहता है। जिस दिन आप थक जाते हैं होने से, और आप कहते हैं, अब कुछ भी मुझे होना नहीं है, अब तो जो मैं हूं राजी हूं। अब मुझे कुछ भी नहीं होना है।

अब तो जो मेरा होना है, वही ठीक है। मेरा अस्तित्व ही अब मेरे लिए काफी है। अब मेरी कोई वासना, कोई दौड़ नहीं है। जिस दिन आपकी भाव की यात्रा बंद हो जाती है, आप मुक्त हो जाते हैं। इसलिए भावना से आप मुक्त न हो सकेंगे। भावना संसार का स्रेत है। भावना रु क जाएगी, तो आप मुक्त हो जाएंगे। यह कहना भी ठीक नहीं कि मुक्त हो जाएंगे; क्योंकि मुक्त आप हैं। भावना के कारण आप बंधे हैं।



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