स्व-उद्यम
बिना पढ़े लोग रात-दिन चलने वाले कारखानों में काम खोज सकते हैं। मशीनी कारखाने में जाकर श्रम कर सकते हैं।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
रात को दुकानों में होने वाले बहुत से कामों में श्रम कर सकते हैं। मजदूर वर्ग के लोग लकड़ी, सींक, कांस, सेंठा, नरकुल, बांस, घास, पटेरा, पतेल, वनस्पतियां, औषधियां, जड़ी-बूटियां जैसी न जाने कितनी चीजें लाकर बाजार में बेच सकते हैं। अत्तारों और हकीम वैद्यों से उनकी आवश्यकता मालूम कर बहुत-सी जंगली चीजें सप्लाई कर सकते हैं। जानवरों का चारा, पत्ते, बेर, करौंदा, जामुन, मकोय, बेल, कैथ आदि जंगली फल लाकर बेच सकते हैं।
अनेक लोग इन्हीं चीजों के आधार पर अपनी जीविका चलाया करते हैं। मिट्टी, रेत तथा दातूनों की सप्लाई भी बड़े-बड़े शहरों में लाभदायक होती है। काम करने की लगन तथा जिज्ञासा होनी चाहिए। दुनिया में काम की कमी नहीं है। न जाने कितने घरेलू धंधे तथा कुटीर उद्योग हैं, जिन्हें करके समय का सदुपयोग किया जा सकता है। उनमें से कढ़ाई-बुनाई, कताई-सिलाई तो साधारण हैं, इसके अतिरिक्त तेल, साबुन, डलिया, झाबे, चटाई, झोले, लिफाफे, थैले, चूरन, चटनी, अचार, मुरब्बे आदि का भी काम किया जा सकता है। इन कामों में सामान्य घरों की स्रियां दक्ष होती हैं।
फसल पर आम, नींबू, आंवला, खीरा, ककड़ी, तरबूज, करेला आदि के अनेक प्रकार के अचार बनाकर बाजार में सप्लाई किए जा सकते हैं। बहुत से परिवार पापड़, बरियां व मगौड़ियां बना कर भी बनियों को सप्लाई करते रहते हैं। पढ़ी-लिखी योग्य स्रियां घर पर सिलाई-कटाई का छोटा-मोटा स्कूल चला सकती हैं। बहुत-सी परिश्रमी नारियां हाथ से सिलने योग्य कपड़ों को दर्जी से लाकर सीकर अर्थ लाभ कर सकती हैं।
अनेक परिवार मिल कर अपने घरों पर कताई-बुनाई, दरी-कालीन तथा निबाड़ बुनने के छोटे कारखाने लगा सकते हैं, जिनको घरों की स्रियां खाली समय में आराम से चला सकती हैं। कागज, गत्ता तथा मिट्टी के खिलौने और कपड़ों की गुड़िया बना कर बेची जा सकती हैं। और भी न जाने कितने काम हो सकते हैं, जिनको घर की स्रियां फालतू समय में आसानी से कर सकती हैं। घरों में हाथ से बनी देशी चीजों का समाज में बड़ा आदर किया जाता है। परिश्रमपूर्वक तथा कम मुनाफे पर करने से ये सब काम आसानी से चल सकते हैं।
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