वर्ण व्यवस्था
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, ऐसे इस विषय में बुद्धिमान पुरु ष भी मोहित हैं, इसलिए मैं वह कर्म अर्थात कर्मो का तत्व तेरे लिए अच्छी प्रकार कहूंगा, जिसको जानकर तू अशुभ अर्थात संसार-बंधन से छूट जाएगा।
आचार्य रजनीश ओशो |
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, बुद्धिमान व्यक्ति भी निर्णय नहीं कर पाते हैं। कृष्ण कहते हैं, वह गूढ़ तत्व मैं तुझसे कहूंगा, जिसे जानकर व्यक्ति मुक्त हो जाता है। अजीब-सी लगेगी यह बात; क्योंकि कर्म क्या है और अकर्म क्या है, यह तो मूढ़जन भी जानते हैं। कृष्ण कहते हैं, कर्म क्या है और अकर्म क्या है, यह बुद्धिमानजन भी नहीं जानते हैं। हम सभी को यह खयाल है कि हम जानते हैं, क्या है कर्म और क्या कर्म नहीं है।
कर्म और अकर्म को हम सभी जानते हुए मालूम पड़ते हैं, लेकिन कृष्ण कहते हैं कि बुद्धिमानजन भी तय नहीं कर पाते हैं कि क्या कर्म है और क्या अकर्म है। गूढ़ है यह तत्व। तो फिर पुनर्विचार करना जरूरी है। हम जिसे कर्म समझते हैं, वह कर्म नहीं होगा; हम जिसे अकर्म समझते हैं, वह अकर्म नहीं होगा। हम किसे कर्म समझते हैं? हम प्रतिकर्म को कर्म समझे हुए हैं, रिएक्शन को एक्शन समझे हुए हैं।
किसी ने गाली दी आपको, और आपने भी उत्तर में गाली दी। आप जो गाली दे रहे हैं, वह कर्म न हुआ; वह प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। किसी ने प्रशंसा की, और आप मुस्कुराए, आनंदित हुए; वह आनंदित होना कर्म न हुआ; प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। आपने कभी कोई कर्म किया है! या प्रतिकर्म ही किए हैं? चौबीस घंटे, जन्म से लेकर मृत्यु तक, हम प्रतिकर्म ही करते हैं; हम रिएक्ट ही करते हैं। हमारा सब करना हमारे भीतर से सहज-जात नहीं होता, स्पांटेनियस नहीं होता। हमारा सब करना हमसे बाहर से उत्पादित होता है, बाहर से पैदा किया गया होता है। किसी ने धक्का दिया, तो क्रोध आ जाता है। किसी ने फूलमालाएं पहनाई, तो अहंकार खड़ा हो जाता है। किसी ने गाली दी, तो गाली निकल आती है।
किसी ने प्रेम के शब्द कहे, तो गदगद हो प्रेम बहने लगता है, लेकिन ये सब प्रतिकर्म हैं। कर्म का अर्थ है, सहज। प्रतिकर्म का अर्थ है, प्रेरित, इंस्पार्यड। कारण है जहां बाहर और कर्म आता है भीतर से, वहां कर्म नहीं है। हम चौबीस घंटे प्रतिकर्म में ही जीते हैं। बुद्ध, या महावीर या कृष्ण या क्राइस्ट जैसे लोग कर्म में जीते हैं।
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