उलझनें
आध्यात्मिक मार्ग पर यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि आप किसी विशेष जगह पहुंचने का प्रयत्न न करें, क्योंकि जैसे ही आप कुछ विशेष पाना चाहेंगे, आपका मन ‘वह विशेष स्थान’ बनाने लगेगा।
सद्गुरु |
आप अपना खुद का निजी स्वर्ग ही बना लेंगे। आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ यह नहीं है कि आप वहम, मतिभ्रम के एक स्तर से निकल कर दूसरे स्तर पर पहुंच जाएं। यह इसलिए है कि आप अपने सारे वहम, सारे मतिभ्रम बिल्कुल ही छोड़ दें, पूर्ण रूप से त्याग दें और वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार करें, जैसी वो है, क्योंकि ये सारे प्रयत्न सत्य के बारे में हैं। सत्य का अर्थ है, जो अस्तित्व में है, न कि वह जो आप अपने मन में बना लेते हैं।
हम अपने मन में भगवान या शैतान देख सकते हैं-दोनों का ही महत्त्व नहीं है। आप जो कुछ देखते हैं वह आपकी संस्कृति पर निर्भर करता है, और उन चीजों पर भी जिनका अनुभव आपको हुआ है। जब आप लोगों को देखते हैं तो उनमें भगवान को देखते हैं, या शैतान को, यह इस पर निर्भर करता है कि आप आशावादी हैं, या निराशावादी। इसका संबंध वास्तविकता से नहीं होता। वास्तविकता तो यह है कि अभी आप यहां हैं, और आपको यह भी नहीं पता कि आप किस कारण से यहां हैं, कहां से आए हैं, और कहां जाएंगे? यही जीवन की वास्तविकता है।
कुछ धर्मो ने हमेशा आशा बांटी है, लेकिन वास्तव में किसी मनुष्य के लिए अगर सबसे खराब कुछ हो सकता है, तो वह है आशा, क्योंकि आशा का अर्थ है कि आप भविष्य की कल्पनाओं में खो जाएंगे, ‘अभी हालत खराब है लेकिन कोई बात नहीं, मैं अच्छा आदमी हूं, लेकिन गरीब हूं तो क्या, जब मैं स्वर्ग में जाऊंगा तब भगवान की गोद में बैठूंगा’। यही आशा है। आप को बस अपने आप को ऐसे बनाना है कि आप कोई कल्पना न करें, अच्छी या बुरी।
आप कोई भगवान या शैतान न बनाएं, स्वर्ग और नर्क, अच्छा और खराब न बनाएं। जैसे ही कोई आपको आशा की झलक देगा, आप कल्पना करने लगेंगे। आशा, झूठ का पुलिंदा बनाने का तरीका है। अगर आप आनंदमय रूप से आशारहित होंगे, तो बात बन जाएगी। आप ऐसी जगह पहुंच पाएं, जहां आप को किसी आशा की जरूरत न हो। फिर जो भी हो आप ठीक रहेंगे, क्योंकि आपने अपने अंदर ही कुछ पा लिया है।
Tweet |