भावनात्मक सुरक्षा

Last Updated 05 Jan 2022 12:03:35 AM IST

जिन्होंने अपना जीवन अपने हाथों में नहीं लिया है, उनका ध्यान हमेशा कोई न कोई चीज से भटकाती रहती है।


सद्गुरु

तो उपकरण कोई समस्या नहीं हैं, समस्या अपनी आदतों से मजबूर होकर कोई काम करना है। हमें अपने युवाओं, बच्चों और बड़ों को भी यह समझाना होगा कि हमें अपने जीवन में किसी भी आदत से मजबूर नहीं होना है। खाना खाना, बैठना, खड़े होना, और काम करना, यह सभी चीजें जागरूकता के साथ होनी चाहिए। अगर हम यह सब जागरूकता के साथ करते हैं, तो हमारा यंत्रों का उपयोग करना भी एक जागरूक प्रक्रिया हो जाएगा। हमें जानकारियों के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए।

100 साल पहले, अगर हमसे केवल 100 कि.मी. की दूरी पर भी कोई दुर्घटना घटती थी, या कुछ अच्छा घटता था, तो उसके बारे में हमें एक महीने बाद पता चलता था। आज, सारी दुनिया में क्या हो रहा है यह आप को उसी क्षण पता चल जाता है। तो तकनीक अच्छी या खराब नहीं होती। इसमें अपना कोई गुण नहीं है-ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे उपयोग में लाते हैं? आप जो भी अन्य तकनीकें इस्तेमाल करते हैं-टेलीफोन, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर या सोशल मीडिया-वे उतनी उन्नत या गूढ़ नहीं हैं, जितना कि हमारा मानव तंत्र-इस धरती पर सबसे उन्नत, सबसे बेहतर उपकरण।

आप को पहले इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए, फिर बाकी सभी को आप स्वाभाविक रूप से संभाल पाएंगे। वरना तकनीकों का जो अदभुत उपहार हमें मिला है, वह अत्यन्त तनावपूर्ण हो जाएगा। अधिकांश मनुष्यों में भावनाएं सबसे बड़ा आयाम होती हैं, इसलिए भावनात्मक सुरक्षा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। अगर एक मनुष्य वास्तव में जागरूक बन जाए तो भावनाओं से फर्क नहीं पड़ता, वरना भावनाएं एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिए।

इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिए इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिए सिर्फ  घर पर ही नहीं, बल्कि स्कूल में भी, गली में भी, जहां भी बच्चा जाए, उसे प्यार भरा, स्नेह भरा, स्वागतपूर्ण वातावरण मिलना चाहिए।



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