दया भावना

Last Updated 06 Jan 2022 01:07:37 AM IST

सहानुभूति मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हर मनुष्य दूसरे मनुष्य से मानवता के एक सूत्र से बंधा हुआ है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

इस नियम में शिथिलता पड़ जाए तो सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो सकता है। स्वार्थ और आत्मतुष्टि की भावना से लोग दूसरों के अधिकार छीन लेते हैं, स्वत्व अपहरण कर लेते हैं, शक्ति का शोषण कर लेने से बाज नहीं आते। इन विश्रृंखलता के आज सभी ओर दशर्न किए जा सकते हैं। अपनी स्वादप्रियता के लिए जानवरों, पशु-पक्षियों की बात दूर रही, लोग दुधमुंहे बच्चों तक का मांस खा जाते हैं, ऐसे समाचार भी कभी-कभी पढ़ने को मिलते रहते हैं।

दवा, श्रृंगार और विलासिता के साधनों की पूर्ति अधिकांश अनैतिक कर्मो से हो रही है। इस जीवन काल में मानवता के संरक्षण के लिए सहानुभूति अत्यन्त आवश्यक है। इसी से दैवी सम्पदाओं का संरक्षण किया जा सकता है। तत्वों से संघर्ष करने के लिये जिस संगठन की आवश्यकता है, उसे सहानुभूति के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। सहानुभूति एक शक्ति है, एक सम्बल है, जिससे मानवता के हितों की रक्षा होती है।

सहानुभूति इतनी विशाल आत्मिक भाषा है कि इसे पशु-पक्षी तक प्यार करते हैं। किसी चरवाहे पर सिंह हमला कर दे तो समूह के सारे जानवर उस पर टूट पड़ते हैं, और सींगों से मार-मारकर बलशाली शेर को भगा देते हैं। एक बन्दर की आर्त पुकार पर सारे बन्दर इकट्ठा हो जाते हैं। बाज के आक्रमण से सावधान रहने के लिये चिड़ियां विचित्र प्रकार का शोर मचाती हैं। यह बिगुल सुनते ही सारे पक्षी अपना-अपना मोर्चा मजबूत बना कर छुप जाते हैं।

सहानुभूति की भावना से जब पशुओं तक में इतनी उदारता हो सकती है, तो मनुष्य इससे कितना लाभान्वित हो सकता है, इसका मूल्यांकन भी नहीं किया जा सकता। हृदय की विशालता, जीवन की महानता, सहानुभूति से मिलती है। सार्वभौमिक, प्रेम, नियम और ज्ञान प्राप्त करने का आधार सहानुभूति है। इससे सारा संसार एक ही सत्ता में बंधा हुआ दिखाई देता है। सहानुभूति के विकास के साथ चार और सुणों का विकास होता है-1) दयाभाव, 2) उदारता, 3) भद्रता; और 4) अंत:दृष्टि। सहानुभूति की भावनाएं जितना अधिक प्रौढ़ होती हैं, दया भावना उसी के अनुरूप  आवेश-मात्र न रहकर स्वभाव का अंग बन जाती है।



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