ठहर कर सोचें
एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार की इच्छा पिता से कही। सत्रह वर्ष धन कमाने में बीते गए तो संतुष्टि हुई और वापस लौटने की इच्छा हुई। जहाज में बैठ गया।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था। सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नहीं है। मैं यहां ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है। सेठ ने सोचा इस देश में मैंने तो बहुत धन कमाया। यह तो मेरी कर्मभूमि है। इसका मान रखना चाहिए। उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई। उस व्यक्ति ने कहा-मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं हैं।
सेठ को सौदा महंगा लग तो रहा था लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 मुद्राएं दे दीं। व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया-कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रुककर सोच लेना। सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया। कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय अपने नगर पहुंचा। उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूं, क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुंच कर उसे आश्चर्य उपहार दूं।
घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपनी पत्नी के कक्ष में गया तो वहां का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई। पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था। अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है। दोनों को जिंदा नहीं छोड़ूंगा। क्रोध में तलवार निकाल ली।
वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 अशर्फियों से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आ गया-कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना। सोचने के लिए रुका। तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई। बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई। जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह खुश हो गई और बोली-इंतजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूं। पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा-बेटा जाग। तेरे पिता आए हैं।
युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई। उसके लंबे बाल बिखर गए। पत्नी ने कहा-स्वामी ये आपकी बेटी है। पिता के बिना इसकी मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने बचपन से ही पुत्र के समान ही इसका पालन-पोषण और संस्कार दिए हैं। सुनकर सेठ के आंसू बह निकले।
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