समय की चूक

Last Updated 22 Nov 2021 12:36:29 AM IST

समय की चूक पश्चाताप की हूक बन जाती है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

जीवन में कुछ करने की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि वे अपने किसी भी कर्त्तव्य को भूलकर भी कल पर न डालें जो आज किया जाना चाहिए। आज के काम के लिए आज का ही दिन निश्चित है, और कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित है। आज का काम कल पर डाल देने से कल का भार दो-गुना हो जाएगा जो निश्चय की कल के समय में पूरा नहीं हो सकता। इस प्रकार आज का कल पर और कल का परसों पर ठेला हुआ काम इतना बढ़ जाएगा कि वह फिर किसी प्रकार पूरा नहीं किया जा सकता।

जिस स्थगनशील स्वभाव तथा दीर्घसूत्री मनोवृत्ति ने आपका काम आज नहीं करने दिया, वह कल करने देगी ऐसा नहीं माना जा सकता। स्थगन-स्थगन को और क्रिया-क्रिया को प्रोत्साहित करती है, यह प्रकृति का एक निश्चित नियम है। जीवन में सफलता के लिए जहां परिश्रम एवं पुरु षार्थ की अनिवार्य आवश्यकता है, वहां सामयिकता का सामंजस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। जिस वक्त को बरबाद कर दिया जाता है, उस वक्त में किया जाने के लिए निर्धारित श्रम भी निष्क्रिय रहकर नष्ट हो जाता है।

श्रम तभी संपत्ति बनता है, जब वह वक्त से संयोजित कर दिया जाता है, और वक्त तभी संपदा के रूप में संपन्नता एवं सफलता ला सकता है, जब उसका श्रम के साथ सदुपयोग किया जाता है। समय का सदुपयोग करने वाले स्वभावत: परिश्रमी बन जाते हैं  जबकि असामयिक परिश्रमी, आलसी की कोटि का ही व्यक्ति होता है। वक्त का सदुपयोग ही वास्तविक श्रम है, और वास्तविक श्रम, अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष का संवाहन पुरु षार्थ एवं परमार्थ है। यदि हम दिनचर्या नियत निर्धारित कर लें और उस पर सावधानी के साथ चलते रहें तो देखा जाएगा कि शरीर ही नहीं, मन भी उसके लिए पूरी तरह तैयार रहता है।

पूजा-उपासना, साहित्य-सृजन, व्यायाम आदि के लिए यदि समय निर्धारित हो तो देखा जाएगा कि सारा कार्य बड़ी सुंदरता और सफलतापूर्वक संपन्न होता चला जाता है। इसके विपरित यदि आए दिन दिनचर्या में उलट-पुलट की जाती रहे तो अंतरंग की स्वचालित प्रक्रिया अस्त-व्यस्त एवं अभ्यस्त हो जाएगी और हर कार्य शरीर से बलात्कारपूर्वक ही कराया जा सकेगा और वह औंधा-सीधा ही होगा, उसकी सर्वाग पूर्णता की संभावना आधी-अधूरी ही रह जाएगी।



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