आवेश व अधीरता
जरा सी प्रतिकूलता को सहन न कर सकने वाले आवेशग्रस्त, उत्तेजित, अधीर और उतावले मनुष्य सदा गलत सोचते और गलत काम करते हैं।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
उत्तेजना एक प्रकार का दिमागी बुखार है। जिस प्रकार बुखार आने पर देह का सारा कार्यक्रम लड़खड़ा जाता है उसी प्रकार आवेश आने पर मस्तिष्क की विचारणा एवं निर्णय में कोई व्यक्ति सही निर्णय नहीं कर सकता। आवेशग्रस्त मनुष्य प्राय: न करने योग्य ऐसे काम कर डालते हैं, जिनके लिए पीछे सदा पश्चाताप ही करते रहना पड़ता है।
आत्महत्याएं प्राय: इन्हीं परिस्थितियों में होती हैं। कहनी अनकहनी कह बैठते हैं। मारपीट, गाली-गलौज, लड़ाई-झगड़े, कत्ल आदि के दुखद कार्य भी उत्तेजना के वातावरण में ही बन पड़ते हैं। अधीरता भी एक प्रकार का आवेश ही है। बहुत जल्दी मनमानी सफलता अत्यन्त सरलतापूर्वक मिल जाने के सपने बाल बुद्धि के लोग देखा करते हैं वे यह नहीं सोचते कि महत्त्वपूर्ण सफलताएं तब मिला करती हैं, जबकि व्यक्ति श्रमशीलता, पुरुषार्थ, साहस, धैर्य एवं सद्गुणों की अग्नि परीक्षा में गुजर कर अपने आपको उसके उपयुक्त सिद्ध कर देता है।
जल्दीबाजी में बनता कुछ नहीं, बिगड़ता बहुत कुछ है। इसलिए धैर्य को सन्तुलन और शान्ति को एक श्रेष्ठ मानवीय गुण माना गया है। तुर्त-फुर्त सफलता किसे मिली है, किसके सब साथी सज्जन और सुणी होते हैं? हर समझदार आदमी को सहनशीलता, धैर्य और समझौते का मार्ग अपनाना पड़ता है। जो प्राप्त है उसमें प्रसन्नता अनुभव करते हुए अधिक के लिए प्रयत्नशील रहना बुद्धिमानी की बात है पर यह परले सिरे की मूर्खता है कि अपनी कल्पना के अनुरूप सब कुछ न मिल जाने पर मनुष्य खिन्न, दुखी और असंतुष्ट ही बना रहे। सबकी सब इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती।
अधूरे में भी जो सन्तोष कर सकता है उसी को इस संसार में थोड़ी सी प्रसन्नता उपलब्ध हो सकती है। अन्यथा असंतोष और तृष्णा की आग में जल मरने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं हैं। अधीर, असंतोष और महत्त्वाकांक्षी मनुष्य जितने दुखी देखे जाते हैं; उतनी जलन, दर्द और पीड़ा से पीड़ित घायल और बीमारों को भी नहीं होती। सन्तोष का मरहम लगाकर कोई भी व्यक्ति इस जलन से छुटकारा प्राप्त कर सकता है।
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