नम्रता
जब आप कहते हैं कि आप आध्यात्मिक रास्ते पर हैं तो इसका मतलब है कि आप सत्य की खोज कर रहे हैं।
जग्गी वासुदेव |
पर आप किस तरह का सत्य पाना चाहते हैं? साधारण रूप से, अधिकतर लोग-चाहे वे मंदिर जाते हों या चर्च या मस्जिद या आश्रम- कुछ ऐसा पाना चाहते हैं जो उन्हें कुछ दे, उनकी मांगें पूरी हों, कुछ जो उनका फायदा कराए। पर जो वास्तव में, सही में सत्य की खोज कर रहा है, उसके लिए सत्य कुछ देता नहीं है। वो तो सब कुछ हड़प लेता है। सत्य उस होशियार इंसान के लिए नहीं है जो इस दुनिया में ‘कुछ’ बनना चाहता है। हर कोई कुछ न कुछ जीतना चाहता है। सिर्फ कोई बेवकूफ ही ‘कुछ नहीं’ बनना चाहेगा। मूर्ख ही समर्पण करना और हार जाना चाहेगा! उन मूखरे की लंबी परंपरा है जो समर्पण करना चाहते हैं, जो ‘कुछ नहीं’ होना चाहते, जो गर्वीले मनुष्य की तरह नहीं, बस मिट्टी की तरह, जमीन की तरह रहना चाहते हैं।
शिव ने देखा कि ये मूर्ख दुनिया में कुछ नहीं कर पाएंगे, तो उन्होंने उन्हें गले लगा लिया। चतुरता नहीं, बल्कि अपनी सरलता की वजह से उन लोगों ने कृपा पा ली। आप होशियार और ताकतवर हैं तो आपके लिए दुनिया के दरवाजे खुल सकते हैं, या लोग करुणावश आपके लिए दरवाजे खोल सकते हैं। पर ऐसे लोगों की पूरी परंपरा है जिन्हें रेंग कर भी पार जाने में कोई शर्म नहीं। ये बेशर्म लोग हैं-उन्हें कोई शर्म नहीं, न ईष्र्या, न गुस्सा आता है, कुछ भी नहीं। अहंकार या गर्व भी नहीं होता। ये वो लोग हैं जो मुक्ति पा लेते हैं।
भारतीय संस्कृति में बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि आप मंदिर में जाएं। हर कोई, वो चाहे जहां हो, एक पल में, किसी भी चीज को भगवान बना सकता है। यह अद्भुत तकनीक है, निर्माण करने की जबरदस्त कुशलता है। पत्थर के टुकड़े को भी भगवान बनाया जा सकता है और आप देखेंगे कि कल सुबह हजारों लोग उसकी पूजा कर रहे होंगे। पत्थर के टुकड़े के सामने भी झुक जाने की इनकी इच्छा गजब की है। किसी के सामने झुक जाने के लिए तैयार रहना इनके लिए इतना आसान है, पर साथ ही यह शक्तिशाली साधन रहा है। कोई पेड़, फूल, पत्थर, लकड़ी-कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो क्या है-लोग उसके आगे परम श्रद्धा से झुकने के लिए तैयार रहते हैं। इस सरल सी तैयारी ने भारत में भौतिकता के पार जाने वाले सबसे ज्यादा लोग तैयार किए।
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