जीवन
जीवन के बहुत से पहलू हैं। जन्म है, बचपन है, जवानी है और बुढ़ापा भी।
जग्गी वासुदेव |
प्रेम, कोमलता, मिठास और कड़वाहट भी है। सफलता की खुशी है, कुछ पाने का संतोष है, दर्द है और आनंद भी। जीव को समझाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है-मृत्यु, वो किसी भी मन की पकड़ के बाहर है-चाहे आप अपने को कितना ही बुद्धिमान, होशियार या बड़ा बुद्धिजीवी मानते हों। चूंकि हम मरणशील हैं, मरने वाले हैं, इसीलिए जीवन उस तरह से चल रहा है जैसे वो चल रहा है। हम मरने वाले नहीं होते तो न कोई बचपन होता, न जवानी, न बुढ़ापा। तब हम सवाल भी ना उठा पाते कि जन्म क्या होता है? आप मृत्यु को नहीं समझते तो जीवन को नहीं जान सकेंगे, न ही उसे संभाल पाएंगे क्योंकि जीवन और मृत्यु सांस लेने और छोड़ने की तरह हैं।
बिना अलग हुए, साथ-साथ रहते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया तभी शुरू होती है जब आप मृत्यु का सामना करते हैं-या तो खुद की या ऐसे व्यक्ति की जो आपको प्रिय है और जिसके बिना जीने की बात आप नहीं सोच सकते। जब मृत्यु आ रही हो, या हो गई हो तब ही अधिकतर लोगों के मन में सवाल आता है, ‘ये सब क्या है, और इसके बाद क्या होगा’? जब तक केवल जीवन ही सत्य लगता है तब तक आपको विश्वास नहीं होता कि ये बस ऐसे ही खत्म होने वाला है। जब मृत्यु पास आ जाती है तभी मन सोचना शुरू करता है कि कुछ और भी है, जो इससे ज्यादा है। पर मन चाहे कितना भी सोच ले, वास्तव में जानता कुछ नहीं है क्योंकि मन सिर्फ उसी डेटा के आधार पर काम करता है जो वो पहले से इकट्ठा कर चुका है।
मन का मृत्यु के साथ कोई वास्ता नहीं पड़ा है तो वो मृत्यु के बारे में नहीं जानता क्योंकि इसके पास उसके बारे में कोई आधारभूत जानकारी नहीं है-सिर्फ कुछ गप्पबाजी है। आपने ऐसी गप्पें सुनी होंगी कि कैसे जब आप मर जाएंगे तो आप जाकर भगवान की गोद में बैठेंगे। ऐसा है तो आपको आज ही मर जाना चाहिए। आपको ऐसा विशेष अधिकार मिलने वाला हो तो पता नहीं आप इसे टाल क्यों रहे हैं? आपने स्वर्ग और नर्क के बारे में भी गप्पें सुनी होंगी। देवदूतों और बाकी चीजों के बारे में भी गपशप सुनी हैं पर कोई पक्की जानकारी नहीं है। ये सोचने में समय बर्बाद मत कीजिए कि मृत्यु के बाद क्या होता है, क्योंकि वो आपके मन की सीमा के बाहर की बात है।
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