स्व-महत्त्व

Last Updated 24 Sep 2020 01:10:32 AM IST

अध्यात्म का अर्थ है अपने आपे का विज्ञान। पदार्थ विज्ञान का, साइंस का अपना महत्त्व है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

उसी के आधार पर मानवी प्रगति की सुविधा साधनों की अगणित उपलब्धियां हस्तगत हो सकती हैं। उन्हीं के सहारे मनुष्य भौतिक प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा है और अन्य जीवधारियों की तुलना में अधिक साधन संपन्न बना है। अध्यात्म चेतना का विज्ञान है। मनुष्य के दो भाग हैं-एक जड़ और दूसरा चेतन। जड़ पंच तत्त्वों से बना शरीर है और चेतन आत्मा। जड़ शरीर के लिए जड़ जगत् से साधन उपक्रम प्राप्त होते हैं और उन्हें जुटाने के लिए भौतिक विज्ञान की विद्या अपनानी पड़ती है। ठीक इसी प्रकार आत्मा को चेतना की प्रगति और समृद्धि के लिए चेतना विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। अध्यात्म विज्ञान, ब्रrा विद्या का प्रयोजन इसी महती आवश्यकता की पूर्ति करता है। अध्यात्म विज्ञान के लक्ष्य हैं-आत्म कल्याण, पूर्णता के परमात्मा स्तर तक पहुंचना। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए चार चरण निर्धारित हैं-1. आत्म चिंतन, 2. आत्म सुधार, 3. आत्म निर्माण, तथा 4. आत्म विकास।

1. आत्मचिंतन अर्थात् अपने चेतन, अजर-अमर शुद्ध चेतन स्वरूप का मान। शरीर और मन में अपनी स्वतंत्र एवं पृथक् सत्ता की प्रगाढ़ अनुभूति। 2. आत्म सुधार अर्थात् अपने ऊपर चढ़े हुए मल आवरण विक्षेप, कषाय-कल्मषों का निरूपण-निरीक्षण और सुसंपन्न स्थिति को विपन्नता में बदल देने वाली विकृतियों की समुचित जानकारी। 3. आत्म निर्माण  अर्थात् विकृतियों को निरस्त करके उनके स्थान पर सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों की, उत्कृष्ट कर्तृत्व और आदर्श कर्तव्य स्थापित करने का सुनिश्चित संकल्प एवं साहसिक प्रयास। 4. आत्म विकास अर्थात् चिंतन और कर्तृत्व को लोक मंगल के लिए सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए और परमात्मस्तर पर विकसित होने के लिए अधिकाधिक संयम, तप, त्याग-बलिदान को संतोष एवं आनंद की अनुभूति। इन चार चरणों में आत्म कल्याण का लक्ष्य प्राप्त होता है। आत्म कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो कुछ करना पड़ता है, उसी का नाम उपासना एवं साधना के दो पहियों पर चलने वाली आत्मिक प्रगति यात्रा कह सकते हैं।



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