अद्भुत

Last Updated 11 Sep 2020 02:11:42 AM IST

एक अद्भुत सच्ची घटना है, जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बदनाम जर्मन यातना शिविर ‘ऑशविट्ज़’ में घटी।


जग्गी वासुदेव

लोगों को नम्बर से बुलाया जा रहा था और उन्हें मारने वाले इलाके में ले जाया जा रहा था। कोई भी नम्बर कभी भी बुलाया जा रहा था, और बूढ़े और कमजोर लोग जो काम नहीं कर सकते थे, उन्हें चुना जा रहा था। जिसका नम्बर बुलाया जा रहा था, उसकी मौत तय थी। एक आदमी का नम्बर बुलाया गया और वो बहुत ही डर गया। जाहिर था कि वो मरना नहीं चाहता था। उसके पास ही एक क्रिश्चियन मिशनरी खड़ा था, जिसका नम्बर नहीं बुलाया गया था। उस आदमी का डर देख कर वो बोला, ‘डरो मत। तुम्हारी जगह मैं जाऊंगा’। उस आदमी को बहुत शर्म आई पर उसने उनकी बात को नहीं ठुकराया। वो जिंदा रहना चाहता था। मिशनरी मारा गया। बाद में जर्मनी की हार हुई और यह आदमी छूट कर बाहर आ गया।

कई सालों तक वो हार और शर्म के भाव में जीता रहा और उसने यह बात अपनी जीवन कथा में कही। उसे यह समझ में आया कि उसके यह सब करने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि उसका जीवन ही किसी से मिला हुआ दान था। किसी और की महानता के कारण वो जी रहा था, नहीं तो उस दिन वो ही मारा जाता। नम्बर उसी का था। वो मिशनरी उसे नहीं जानता था। वो उसका दोस्त, पिता, या पुत्र, कुछ भी नहीं था। सिर्फ  उसके डर और दुख को कम करने के लिए उसने यह निर्णय लिया था। केवल वह आदमी जीवन को जानेगा-वो जो चला गया, वो नहीं जो पीछे रह गया।

सिर्फ  वही अपने आप में एक खास मजबूती और शक्ति का अनुभव कर सकता है, वह आदमी नहीं जो अपने आप को बचा रहा है-वो यह अनुभव कभी नहीं कर सकता। इसका मतलब यह नहीं है कि आप जा कर अपना बलिदान दे दें, या ऐसा कुछ पागलपन करें। वो आदमी जो अपनी मौत की तरफ गया, वो अपना बलिदान देने की बात नहीं सोच रहा था। वो किसी दूसरे के लिए अपने आप को बलिदान करने के लिए उतावला नहीं हो रहा था। उस समय उसने बस यह देखा कि क्या करने की जरूरत थी और उसने बिना दूसरा कोई विचार किए, बस यह कर दिया। यह एकदम अद्भुत बात है।



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