कानून

Last Updated 08 Sep 2020 12:25:53 AM IST

कानून की सभी प्रणालियां समाज द्वारा उन लोगों से लिया गया प्रतिशोध हैं, जो समाज की व्यवस्था के अनुरूप नहीं हैं।


आचार्य रजनीश ओशो

मेरे अनुसार, कानून न्यायपूर्ण लोगों की रक्षा के लिए नहीं है, वह भीड़ के सामूहिक मन की रक्षा के लिए है-फिर वह न्यायपूर्ण है या नहीं है, यह सवाल नहीं है। कानून व्यक्ति के खिलाफ है और भीड़ के लिए है। वह व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को, स्वयं होने की उसकी संभावना को अवरु द्ध करने का एक प्रयास है।

नवीनतम वैज्ञानिक खोजें किन्हीं और ही सत्यों पर रोशनी डालती हैं, जिनको अपराधी कहा जाता है, शायद उनमें दस प्रतिशत लोग अपने अपराधों के लिए जिम्मेवार नहीं होते। उनके अपराध जेनेटिक होते हैं, आनुवंशिक होते हैं। जैसे अंधा आदमी उसके अंधेपन के लिए जिम्मेवार नहीं होता, वैसे ही हत्यारा उसकी हत्या करने की वृति के लिए जिम्मेवार नहीं होता। दोनों ही यह प्रवृति विरासत में पाते हैं-एक अंधेपन की, दूसरा हत्या करने की। अब यह लगभग एक प्रामाणिक वैज्ञानिक तथ्य है कि किसी भी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दंड देना सिर्फ  मूढ़ता है।

यह करीब-करीब ऐसे ही है जैसे हम किसी व्यक्ति को इसलिए सजा दें क्योंकि उसे टी.बी. है, किसी को कैद कर लें क्योंकि वह कैंसर का मरीज है। सभी अपराधी रु ग्ण होते हैं-मानसिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से, दोनों तरह से। मेरी दृष्टि के अनुसार जो कम्यून होगा, उसकी अदालतों में विधि विशेषज्ञ नहीं होंगे; वहां पर वे लोग होंगे जो आनुवंशिकी, जेनेटिक्स को तथा इस बात को समझते हैं कि किस तरह अपराध की मनोवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। उन्हें यह नहीं तय करना होगा कि इसे क्या सजा दें-क्योंकि कोई भी सजा देना गलत है; गलत ही नहीं, वह अपने आप में एक अपराध है। जिस आदमी ने गलत काम किया है, उसे उचित संस्था में भेजना होगा।

किसी मनोचिकित्सक संस्थान में या मनोविश्लेषक विद्यालय में या शायद अस्पताल में शल्य-क्रिया के लिए। उसे हमारी सहानुभूति की, हमारे प्रेम की, हमारी सहायता की जरूरत है, लेकिन बजाय उसे अपनी सहानुभूति देने के, अपना प्रेम देने के, सदियों-सदियों से हम उसे सजा देते रहे हैं। व्यवस्था, कानून, न्याय, इन सुंदर-सुंदर नामों की आड़ में आदमी ने अत्यधिक क्रूरताएं की हैं। नये मनुष्य के लिए कोई कारागृह नहीं होंगे, कोई न्यायाधीश नहीं होंगे और कोई विधि-विशेषज्ञ नहीं होंगे। ये बिल्कुल ही अनावश्यक हैं, ये समाज के शरीर पर कैंसर की सूजन हैं।



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