आदमी एक कंपन

Last Updated 14 Jan 2020 06:01:04 AM IST

स्थिर ज्ञान-नॉनवेवरिंग नॉलिज-क्या है? यह एक गहरे से गहरा रहस्य है। इसे समझने के लिए हमें मन की जो बनावट है, उसकी गहराई में प्रवेश करना पड़ेगा।


आचार्य रजनीश ओशो

मन में कई प्रकार के विचार होते हैं। प्रत्येक विचार एक कंपन है प्रत्येक विचार एक लहर है। जब कोई भी विचार न हो, तभी मन निश्चल होगा। एक भी विचार उठा और आप कंप गए। और एक विचार भी केवल एक विचार ही नहीं है, वह एक बड़ी जटिल घटना है। एक अकेला विचार भी कई तरंगों से बनता है।

एक शब्द भी अनेक तरंगों से निर्मिंत होता है। अत: एक शब्द भी तब बनता है, जब मन में अनेक तरंगें उठ रही हों, और एक अकेले विचार में ऐसे कितने ही शब्द होते हैं। हजारों-हजारों तरंगों से कहीं एक विचार निर्मिंत होता है। विचार सब से अधिक बाह्य वस्तु है, परन्तु तरंगें उसके भी पहले हैं। उन्हें आप तभी जान पाते हैं, जब तरंगें विचारों में परिवर्तित हो गई होती हैं क्योंकि आपकी सजगता बहुत स्थूल है। हम तब सजग नहीं होते, जब तरंगें शुद्ध तरंगें हों, और वे विचार बनने की प्रक्रिया में हों।

जितने अधिक आप सजग होंगे, उतना ही अधिक आप अनुभव करेंगे कि विचार की बहुत सी परतें होती हैं। विचार अंतिम परत है। विचार के पहले बीज-तरंगें होती हैं, जो कि विचार को पैदा करती हैं और बीज-तरंगों के पूर्व उनसे भी ज्यादा गहरी जड़ें होती हैं जो कि बीजों को उपजाती हैं। बीज विचारों की रचना करते हैं। कम से कम तीन परतें बहुत आसानी से दिखलाई पड़ती हैं किसी भी जागरूक चित्त के लिए। परन्तु हम सीधे जागरूक नहीं हो जाते, अत: हम तभी सजग होते हैं। जब तरंगें सर्वाधिक स्थूल रूप ले सकती हैं, विचार बन जाती हैं। जहां तक हम जानते हैं, विचार सब से अधिक सूक्ष्म चीज है। किंतु वह है नहीं। विचार, वास्तव में, एक वस्तु बन गया है।

जब शुद्ध तरंगें होती हैं, तब आप उन्हें नहीं पहचान सकते कि क्या होने वाला है, कौन सा विचार आप में पैदा होने वाला है। अत: हम तभी जान पाते हैं, जब कि तरंगें विचार बन चुकती हैं। एक अकेले विचार का मतलब होता है, हजारों-हजारों तरंगें। कितना हम कंप रहे हैं, हम निरंतर विचारों से घिरे हैं। इसलिए हम वस्तुत: एक अस्थिर, कांपते हुए विचार-चक्र हैं। सोरेन किकगार्ड ने कहा है कि आदमी सिर्फ  एक कंपन है। पर एक बुद्ध वैसे नहीं हैं, क्योंकि बुद्ध एक आदमी नहीं हैं। यह विचार की प्रक्रिया कंपन की प्रक्रिया है। अत: स्थिर का अर्थ है : एक निर्विचार मन की स्थिति।



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