सफलता
महत्ता इस बात की नहीं कि सफलता कितनी बड़ी पाई गई। गरिमा इस बात की है कि उसे किस प्रकार पाया गया।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
अनीति का मार्ग अपनाकर कोई सफलता अधिक बड़ी मात्रा में और अधिक जल्दी पाई जा सकती है, जबकि नीति का मार्ग अपनाकर चलने से देर भी लगेगी और मात्रा भी सीमित रहेगी। अधीर व्यक्ति जल्दी और अधिक पाने की बात सोचते हैं और इसी के लिए किसी भी रास्ते कुछ भी कर गुजरने के लिए आतुर रहते हैं।
सम्भव है तात्कालिक लाभ की दृष्टि से वे सफल भी रहें और बुद्धिमान भी समझे जाएं, पर अन्तत: यह सौदा बहुत महंगा पड़ता है। ऐसी उपलब्धियां स्वयं ही पानी के बबुले की तरह नष्ट हो जाती हैं और उस उपार्जनकत्र्ता को भी साथ ले डूबती हैं। इतिहास के पृष्ठों पर ऐसे अनेक नाम हैं जो आंधी तूफान की तरह उभरे और झाग की तरह तली में बैठ गये। रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, चंगेजखां, नादिरशाह, सकिंदर, हिटलर आदि के कितने नाम ऐसे हैं, जिन्हें अपने समय का सफल मनुष्य कहा जा सकता है। उनकी सफलताएं अपेक्षाकृत अधिक भी थीं, और बड़ी भी, किन्तु उनसे क्या बना?
सफलताएं उन्हें महंगी पड़ीं। जो कमाया था वह चला गया। आतंकवाद के आधार पर उपार्जित किया गया बड़प्पन देर तक न टिका, बल्कि उसका स्थान चिरस्थायी अपयश ने ले लिया। उत्पीड़ितों और शोषितों का करुण क्रन्दन अनन्त काल तक उनकी आत्मा को नोंचता-कोंचता रहेगा। तस्कर डाकू और छली बात की बात में प्रचुर धन प्राप्त कर लते हैं, पर वह धन उनकी सुख-शांति में तनिक भी सहायता कर सका हो, ऐसा कभी नहीं देखा गया। सफलताएं अपने आप में कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। एक से एक बड़ी सफलताएं पाने वाले लोग इस संसार में हो चुके हैं और होंगे। उनकी तुलना में हमारी सफलता का मूल्य तुच्छ है। ऐसी छुटपुट सफलताएं और असफलाएं तो कोई भी कभी पाता रहता है।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सफलता किस रास्ते, किस उपाय से प्राप्त की गई? वस्तुत: वह उपाय या मार्ग ही प्रशंसा या निन्दा का केंद्रबिन्दु होता है। इसी के आधार पर व्यक्तित्व और कर्तृत्व की परख होती है। निन्दा और प्रशंसा की पृष्ठभूमि वह प्रक्रिया ही है, जिसे सफलता की मंजिल पर चलते हुए अपनाया गया। न्याय का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयास करने वालों में से कितने ऐसे भी होते हैं, जिन्हें घोर कष्ट सहने पड़े और असफलता ही पल्ले पड़ी।
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