आभास

Last Updated 21 Oct 2019 12:25:22 AM IST

एक बार एक व्यक्ति की उसके बचपन के टीचर से मुलाकात होती है, वह उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय देता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

वे बड़े प्यार से पूछती है, ‘अरे वाह, आप मेरे विद्यार्थी रहे हैं, अभी क्या करते हो, क्या बन गए हो?‘ ‘मैं भी एक टीचर बन गया हूं’ वह व्यक्ति बोला, ‘और इसकी प्रेरणा मुझे आपसे ही मिली थी जब में 7 वर्ष का था।’ उस टीचर को बड़ा आश्चर्य हुआ, और वे बोली कि, ‘मुझे तो आपकी शक्ल भी याद नहीं आ रही है, उस उम्र में मुझसे कैसी प्रेरणा मिली थी?’
वो व्यक्ति कहने लगा कि ..
‘यदि आपको याद हो, जब में चौथी क्लास में पढ़ता था, तब एक दिन सुबह सुबह मेरे सहपाठी ने उस दिन उसकी महंगी घड़ी चोरी होने की आपसे शिकायत की थी, आपने क्लास का दरवाजा बन्द करवाया और सभी बच्चों को क्लास में पीछे एक साथ लाइन में खड़ा होने को कहा था, फिर आपने बार-बारी से सभी बच्चों की जेबें टटोली थी। मेरी जेब से आपको घड़ी मिल गई थी, जो मैंने चुराई थी, पर चूंकि आपने सभी बच्चों को अपनी आंखें बंद रखने को कहा था तो किसी को पता नहीं चला कि घड़ी मैंने चुराई थी। टीचर उस दिन आपने मुझे लज्जा व शर्म से बचा लिया था, और इस घटना के बाद कभी भी आपने अपने व्यवहार से मुझे यह नहीं लगने दिया कि मैंने एक गलत कार्य किया था, आपने बगैर कुछ कहे मुझे क्षमा भी कर दिया और दूसरे बच्चे मुझे चोर कहते इससे भी बचा लिया था।’ ये सुनकर टीचर बोली, ‘मुझे भी नहीं पता था बेटा कि वो घड़ी किसने चुराई थी’ वो व्यक्ति बोला,‘नहीं टीचर, ये कैसे संभव है? आपने स्वयं अपने हाथों से चोरी की गई घड़ी मेरे जेब से निकाली थी।’

टीचर बोली..
‘बेटा मैं जब सबके पॉकेट चेक कर रही थी, उस समय मैंने कहा था कि सब अपनी आंखे बंद रखेंगे, और वही मैंने भी किया था, मैंने स्वयं भी अपनी आंखें बंद रखी थी।’ मित्रो..
किसी को उसकी ऐसी शर्मनाक परिस्थिति से बचाने का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है?
यदि हमें किसी की कमजोरी मालूम भी पड़ जाए तो उसका दोहन करना तो दूर, उस व्यक्ति को ये आभास भी ना होने देना चाहिए कि आपको इसकी जानकारी भी है।



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