कश्मीर
भारत में मैं कई राजनेताओं को जानता हूं किन्तु उनमें दिमाग नहीं पाया। मेरा एक मित्र भारतीय सेना का कमांडर इन चीफ था। नाम था जनरल चौधरी।
आचार्य रजनीश ओशो |
जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो इस आदमी ने प्रधानमंत्री से हमले का मुकाबला करने की अनुमति मांगी। चौधरी का सुझाव था कि हमें पाकिस्तान पर चार-पांच मोचरे से आक्रमण करना चाहिए। वे समझ नहीं पाएंगे अपनी सेना कहां भेजें? जनरल चौधरी ने मुझे बताया कि बाद में सार्वजनिक रूप से तो वे ससम्मान सेवानिवृत्त हुए लेकिन सचाई यह है कि उन्हें निकाला गया था। कहा गया था-‘या तो इस्तीफा दें या हम आपको बाहर निकाल देंगे।’ अपराध क्या था उनका? अपराध था कि उन्होंने 6 बजे के स्थान पर सुबह 5 बजे पाकिस्तान पर हमला कर दिया, क्योंकि उनकी नजर में यही सही समय था, 6 बजे तो सूर्योदय हो जाएगा, लोग जाग जाएंगे। देखते ही देखते भारतीय सेनाएं पाकिस्तान से सबसे बड़े शहर लाहौर से सिर्फ 15 मील दूर रह गई। तभी उन्होंने रेडियो पर सुना-‘जनरल चौधरी लाहौर में प्रवेश कर रहे हैं।’ यह स्थिति राजनेताओं के लिए असहनीय थी।
उन्होंने लाहौर से सिर्फ 15 मील दूर उन्हें रोक दिया। जहां तक मैं समझता हूं, यह मूर्खता की पराकाष्ठा थी। उस दिन लाहौर जीत लिया जाता, कश्मीर की समस्या और भारत का सरदर्द हमेशा के लिए हल हो गया होता। जनरल चौधरी ने प्रधानमंत्री से साफ कहा-‘सैन्य रणनीतियों को मैं समझता हूं, आप नहीं। आप छह बजे की बात करते हैं पर उस समय भी आपका ऑर्डर कहां था? पाकिस्तान ने पहले ही कश्मीर के सबसे सुंदर हिस्से पर कब्जा कर लिया था-और आप पूरी रात चर्चा ही करते रहे। यह चर्चा का समय नहीं था- युद्ध के मैदान पर फैसला किया जाना चाहिए था। अगर आपने मुझे लाहौर में जाने की अनुमति दी होती तो हम सौदेबाजी की स्थिति में होंते।
अब हम सौदेबाजी की स्थिति में नहीं हैं। आपने मुझे वापस बुला लिया और मुझे वापस आना पड़ा।’ मैंने जनरल चौधरी से कहा था-‘यह एक साधारण सी बात थी कि आपको सौदेबाजी की स्थिति में होना चाहिए था। यदि आपने लाहौर ले लिया होता तो वे कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते क्योंकि वे लाहौर खोना बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। उसके बाद अगर कोई संघर्ष विराम होता भी तो सौदेबाजी करते समय लाहौर हमारे पास होता। अब सौदेबाजी के लिए भारत के पास क्या है? पाकिस्तान को क्या परेशानी?’
‘लेकिन राजनेताओं में दिमाग होता ही कहां है?’
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