आदमी बनो
यदि आप कहें कि वह मनुष्य था तो इसमें सन्देह नहीं किया जाएगा। एक बात अवश्य है, शरीर से वह मनुष्य था हृदय और मस्तिष्क उसे मिलना था, पर वह इससे पहले ही आपके द्वारा हिंदू, मुसलमान, ईसाई बना दिया गया?
श्रीराम शर्मा आचार्य |
क्या ही अच्छा होता कि-उसे जब मनुष्य का शरीर मिला था तो मनुष्य का हृदय और मस्तिष्क भी पा जाने देते और वह हिंदुस्तानी, हिंदू मुसलमान, राजपूत, ब्राह्मण, पंजाबी, बंगाली बनता, वह आदमी भी रहता और हिंदू, मुसलमान, ईसाई भी। परन्तु आपकी भयानक भूल से वह आज तक केवल शरीर से मनुष्य अर्थात आधा ही मनुष्य रहा। ठीक यही दशा आपकी भी है।
आप कोरे दुकानदार, वकील और दस्तकार हैं, आदमी नहीं। यदि शरीर की बनावट पर ध्यान न दिया जाए तो आप में और पशु में बहुत कम अंतर रह गया है एक आप जैसा मनुष्य रूप में पशु सिगरेट पीने लगा है, आप भी उसकी देखा-देखी सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं, आपको इस चाल में भेड़ की सिफत है। आपके हित के लिए कोई मनुष्य का संगठन करना चाहता है। आप में से एक भागता है, उसको संभालता है तो दूसरा चला जाता है, तीसरा काबू में आया तो चौथा निकल गया। यह आप में उन मेढकों के गुण हैं, जो तोलने में नहीं आते।
इसी तरह आप में चमगादड़, बगुले, काग और गीदड़ आदि पशुओं के स्वभाव और उनकी आदमें मिलती हैं। इसलिए आपके संबंध में कूपमण्डूक, तराजू के मेढक, भेड़चाल आदि उपाधि ठीक ही प्रचलित है। आज आपका समाज मानव समाज नहीं, हिंदू समाज मुस्लिम समाज है। आपका धर्म मानव धर्म नहीं, सनातन धर्म इस्लाम धर्म है। आपकी जाति मनुष्य नहीं, गूजर, कोली, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, चमार है। आपकी सभ्यता मानव सभ्यता नहीं, इंग्लिश एटिकेट है।
असल बात है कि आप मनुष्य ही नहीं हैं। आपमें एक खूबी है। मनुष्य के लिए हृदय और मस्तिष्क जरूरी है और हृदय और मस्तिष्क की खुराक भी, पर आप इन सब के बिना भी जीते हैं, पर केवल जीते ही हैं। वे आनन्द, जिनकी जीवित प्राणी आकांक्षा कर सकता है, आपको प्राप्त नहीं है। निर्दोष, शांतिमय, सर्वागपूर्ण जिंदगी का मजा आपको चखने भर को नहीं मिलता। किसी प्रकार आपका जीवन तो स्थिर है पर उसमें जिंदगी का नाम नहीं।
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