याददाश्त
आप जिसे अपना शरीर और अपना मन कहते हैं वो यादों का एक ढेर भर है। इन यादों या सूचनाओं के कारण ही शरीर ने अपना आकार लिया है।
![]() जग्गी वासुदेव |
हम जो कुछ भी खाते हैं वह इन्हीं यादों या सूचनाओं के आधार पर शरीर में बदल जाता है। मान लीजिए मैं एक आम खाता हूं, तो यह मुझमें आ कर एक पुरुष बन जाएगा। अगर कोई स्त्री इस आम को खाती है तो वह आम उसमें जा कर स्त्री बन जाता है। अगर कोई गाय उस आम को खा ले तो वह आम गाय के शरीर में जा कर गाय बन जाएगा। ऐसा क्यों है कि एक आम मेरे शरीर में जा कर पुरुष ही बनता है, स्त्री या गाय नहीं? यह मूल रूप से उस खास याददाश्त के कारण है जो मेरी शारीरिक व्यवस्था में है।
अगर आप शारीरिक रूप से बहुत ज्यादा सक्रिय हैं या आप का कोई चिकित्सीय मामला है, तो बात अलग है, वरना 35 साल की उम्र के बाद दिन में सिर्फ दो बार भोजन करना निश्चित रूप से आप के लिये ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होगा। और ऐसा क्यों है कि जब मैं आम खाता हूं तो इसका एक भाग मेरी त्वचा बनता है, जिसका रंग मेरी त्वचा के रंग का ही होता है? आप को अचानक मेरे हाथ पर आम के रंग का पैबंद नहीं दिखता।
कारण यह है कि याददाश्त की संरचना इतनी ज्यादा मजबूत है कि मैं चाहे जो भी अंदर डालूं, मेरी याददाश्त सुनिश्चित करेगी कि वो मेरा रूप ही ले, किसी अन्य व्यक्ति का नहीं। जैसे-जैसे आप की उम्र बढ़ती जाती है, आपकी खाने को शरीर में बदलने की योग्यता कम होती जाती है। इसका कारण यह है कि आप की आनुवंशिक (वंश से जुड़ी) याद्दाश्त तथा क्रमिक विकास की याद्दाश्त, दोनों की आप के खाये हुए खाने को आप में बदलने की शक्ति कमजोर पड़ती जाती है।
आप स्वस्थ्य हो सकते हैं और खाने को ठीक तरह से पचा भी सकते हैं पर आप का शरीर एक आम को मनुष्य बनाने की प्रक्रिया को पहले जैसी ताकत के साथ नहीं कर पाता। पाचन तो होगा पर याद्दाश्त कमजोर पड़ने के कारण एक जीवन का दूसरे में रूपांतरण अच्छी तरह से नहीं होगा। शरीर इस धीमे होने की प्रक्रिया के साथ तालमेल बना लेता है, पर अगर आप इस बारे में जागरूक हैं कि आप क्या खा रहे हैं और कैसे खा रहे हैं तो आप इसे और ज्यादा सूझबूझ के साथ तालमेल में ला सकते हैं।
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