अध्यात्म
अध्यात्म की तुलना अमृत, पारस और कल्पवृक्ष से की गई है। इस महान तत्व ज्ञान के संपर्क में आकर मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को, बल और महत्व को, पक्ष और प्रयोजन को ठीक तरह समझ लेता है।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
इस आस्था के आधार पर विनिमत कार्य पद्धति को दृढ़तापूर्वक अपनाए रहने पर वह महामानव बन जाता है, भले ही सामान्य परिस्थितियों का जीवन जीना पड़े। अध्यात्मवादी की आस्थाएं और विचारणाएं इतने ऊंचे स्तर की होती हैं कि उनके निवास स्थान अन्त:करण में अमृत का निर्झर झरने जैसा आनंद और उल्लास हर घड़ी उपलब्ध होता रहता है। अध्यात्म निस्संदेह पारसमणि है। जिसने उसे छुआ वह लोहे से सोना हो गया। गुण, कर्म और स्वभाव में महत्तम उत्कृष्टता उत्पन्न करना अध्यात्म का प्रधान प्रतिफल है। जिसकी आंतरिक महानता विकसित होगी, उसकी बाह्य प्रतिभा का प्रखर होना नितांत स्वाभाविक है। और प्रखर प्रतिभा जहां कहीं भी होगी, वहां सफलताएं और समृद्धियां हाथ बांधे सामने खड़ी दिखाई देंगी। लघु को महान बनाने की सामथ्र्य और किसी में नहीं, केवल अंतरंग की महत्ता, गुण कर्म स्वभाव की उत्कृष्टता में है।
इसी को अध्यात्म उगाता, बढ़ाता और संभालता है, फलस्वरूप उसे पारस कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं। उसे पाकर अन्त:रंग ही हष्रोल्लास में निमग्र नहीं रहता, बहिरंग जीवन भी स्वर्ग जैसी आभा से दीप्तिमान होता है। इतिहास का पन्ना-पन्ना इस प्रतिपादन से भरा पड़ा है कि इस तत्व ज्ञान को अपना कर कितने कलुषित और कुरूप लौहखंड स्वर्ण जैसे बहुमूल्य, महान, अग्रणी एवं प्रकाशवान बनने में सफल हुए हैं। कल्पना की ललक और लचक ही मानव जीवन का सबसे बड़ा आकषर्ण है। कल्पनालोक में उड़ने वाले ही कलाकार कहलाते हैं। सरसता नाम की जो अनुभूतियां हमें तरंगित, आकषिर्त एवं उल्लसित करती हैं, उनका निवास कल्पना क्षेत्र में ही है। भावनाओं में ही आनंद का उम है। आहार निद्रा से लेकर इंद्रिय तृप्ति तक की सामान्य शारीरिक क्रियाएं भी मनोरम तब लगती हैं, जब उनके साथ सुव्यवस्थित भाव कल्पना का तारतम्य जुड़ा हो अन्यथा वे नीरस व भार रूप क्रियाकलाप मात्र रह जाती हैं। उच्च कल्पनाएं अभावग्रस्त, असमर्थ जीवन में भी आशाएं व उमंगें संचारित करती रहती हैं। संसार में जितना शरीर संपर्क से उत्पन्न सुख है, उससे लाख-करोड़ गुना कल्पना, विचारणा व भावना पर अवलम्बित है।
Tweet |