इंद्रियां

Last Updated 19 Feb 2018 04:58:23 AM IST

प्रभुपाद ने भगवान कृष्ण को गोविन्द कहकर संबोधित किया क्योंकि वे गौवों और इंद्रियों की समस्त प्रसन्नता के विषय हैं.


स्वामी प्रभुपाद

इस विशिष्ट शब्द का प्रयोग करके अर्जुन संकेत करता है कि कृष्ण यह समझें कि अर्जुन की इंद्रियां कैसे तृप्त होंगी. किन्तु गोविन्द हमारी इंद्रियों को तुष्ट करने के लिए नहीं हैं.

हां, यदि हम गोविन्द की इंद्रियों को तुष्ट करने का प्रयास करते हैं तो हमारी इंद्रियां स्वत: तुष्ट होती हैं. भौतिक दृष्टि से, प्रत्येक व्यक्ति अपनी इंद्रियों को तुष्ट करना चाहता है और चाहता है कि ईश्वर उसके आज्ञापालक की तरह काम करें. किंतु ईश्वर उनकी तृप्ति वहीं तक करते हैं, जितनी के वे पात्र होते हैं-उस हद तक नहीं जितना वे चाहते हैं.

मगर जब कोई इसके विपरीत मार्ग ग्रहण करता है अर्थात जब वह अपनी इंद्रियों की तृप्ति की चिन्ता न करके गोविंद की इंद्रियों की तृप्ति करने का प्रयास करता है तो गोविंद की कृपा से जीव की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. यहां पर जाति और कुटुम्बियों के प्रति अर्जुन का प्रगाढ़ स्नेह आंशिक रूप से इन सबके प्रति उसक स्वाभाविक करुणा के कारण है. अत: वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है.

हर व्यक्ति अपने वैभव का प्रदर्शन अपने मित्रों और परिजनों के समक्ष करना चाहता है किन्तु अर्जुन को भय है कि उसके सारे मित्र और परिजन युद्धभूमि में मारे जाएंगे और वह विजय के पश्चात उनके साथ अपने वैभव का उपयोग नहीं कर सकेगा. भौतिक जीवन का यह सामान्य लेखा-जोखा है. परंतु आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वथा भिन्न होता है.

चूंकि भक्त भगवान की इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है अत: भगवद्-इच्छा होने पर वह भगवान की सेवा के लिए सारे ऐर्य स्वीकार कर सकता है किंतु यदि भगवद्-इच्छा न हो तो वह एक पैसा भी ग्रहण नहीं करता अर्जुन अपने संबंधियों को मारना नहीं चाह रहा था और यदि उनको मारने की आवश्यकता हो तो अर्जुन की इच्छा थी कि कृष्ण स्वयं उनका वध करें. इस समय उसे यह पता नहीं है कि कृष्ण उन सबों को युद्धभूमि में आने के पूर्व ही मार चुके हैं और अब उसे निमित्त मात्र बनना है. इसका उद्घाटन अगले अध्यायों में होगा.

भगवान की असली भक्त होने के कारण अर्जुन अपने अत्याचारी बंधु-बांधवों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था किन्तु यह तो भगवान की योजना थी कि सबका वध हो. भगवद्भक्त दुष्टों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहते मगर भगवान दुष्टों द्वारा भक्त के उत्पीड़न को सहन नहीं कर पाते.



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