पाखंड

Last Updated 29 Aug 2017 06:16:52 AM IST

हजारों वर्षों से आदमी हर संभव तरीके से उसे छिपाने की कोशिश करता रहा है, जो उसके अंदर कुरूप है-शरीर में, मस्तिष्क में या आत्मा में. यहां तक कि वे व्यक्ति भी, जो स्वाभाविक रूप से सुंदर हैं, उनका अनुकरण करना शुरू कर देते हैं, जो कुरूप और कृत्रिम होते हैं.


धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो

केवल इस कारण से कि कृत्रिमता धोखा देने में सक्षम होती है. उदाहरण के लिए स्तन स्वाभाविक रूप से इतने सुंदर नहीं होते जितने दिखाई दे सकते हैं.

यहां तक कि कोई स्त्री, जिसके स्तन स्वाभाविक रूप से सुंदर हों, भी सोचना शुरू कर देती है कि वह स्त्री, जिसके स्तन स्वाभाविक सुंदर नहीं हैं, अथवा वह कम से कम ऐसा मान लेती है, तो भी ऐसा दिखावा करती है जैसे वह बहुत ही सुंदर हो.

इस तरह से स्वाभाविक सुंदरता भी अनुकरण करना शुरू कर लेती है. श्रृंगार, और श्रृंगार का विचार मूलरूप से पाखंड है. प्रत्येक को स्वयं के स्वाभाविक रूप को प्रेम और स्वीकार करना चाहिए..केवल शारीरिक स्तर पर ही नहीं क्योंकि यहीं से यात्रा प्रारंभ होती है, और अगर तुम यहां पर गलत हो, तब क्यों नहीं इसी तरह से मस्तिष्क के संबंध में मान ले सकते?

तब स्वयं को संत (ज्ञानी) मान लेने में क्या बुराई है, ज्ञानी, जो तुम नहीं हो?, तब भी तर्क वही रहेगा और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि नकल असल को हरा देती है, क्योंकि नकल अभ्यास कर सकती है, दोहराई व व्यवस्थित की जा सकती है, उसमें बहुत तरीकों से कुशलता लाई जा सकती है. मैं यह नहीं कह रहा कि वह सब, जो प्राकृतिक नहीं है, बुरा है.

उदाहरण के लिए ओंठों को अच्छे भोजन, अच्छे व्यायाम और अच्छी दवाइयों से भी लाल किया जा सकता है. यह भी प्रकृति में किया गया सुधार है, लेकिन प्रकृति में, प्राकृतिक तौर पर किया गया सुधार है.

असली जीवन-प्राकृतिक ही हो सकता है, एक दिन असली जीवन ही प्रकृति के पार जा सकता है. लेकिन प्रकृति ही उसकी बुनियाद हो सकती है, प्रकृति के विरुद्ध जाकर नहीं, उसे छिपा कर नहीं, बल्कि उसे खोज कर, जो प्रकृति का अंतरतम मूल स्वरूप है.

तब यह एक उत्कृष्टता है, एक अत्यंत ही सुंदर अनुभव है. वह तुम्हें सुंदर बना जाता है-तुम्हारे शरीर को, तुम्हारे मस्तिष्क को, तुम्हारी आत्मा को. यह केवल तुम्हें ही सुंदर नहीं बनाता, बल्कि उन्हें भी सुंदर बना देता है, जो व्यक्ति तुम्हारे संपर्क में आते हैं. यह सुंदरता परलोक से संबंधित है; ईश्वरीय देन है, कुछ ऐसा है, जो ऊपर से आ कर तुम्हारे ऊपर बरस जाता है.



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