जीवन-प्रबंधन
जीवन जीना एक कला है और जो व्यक्ति इस कला से परिचित हैं, वे अपने जीवन को सुगमता व सरलता से जीते हैं.
सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो) |
जीवन-प्रबंधन का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र यही है कि व्यक्ति को सबसे पहले अपने चरित्र का निर्माण करना चाहिए, क्योंकि चरित्र के आधार पर ही व्यक्ति का विचार, व्यवहार और आचरण तय होता है. इन्हीं गुणों के अनुसार व्यक्ति कर्म करता है और उसी के आधार पर उसे फल मिलता है. स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि सौ नये विद्यालयों के निर्माण से कहीं महत्त्वपूर्ण है एक बालक का चरित्र निर्माण.
यदि बालक का चरित्र निर्माण हो गया, तो बाकी अन्य चीजें स्वत: ही हो जाती हैं. किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए यह बेहद जरूरी है कि व्यक्ति जिसके भी संपर्क में आए, उसे उनसे हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए. कवि कहता है कि-मधुर वचन, औषधि और कटु वचन-तीर के समान है. हमारा अच्छा व्यवहार व मीठे शब्द हमारे बिगड़े काम को सुधार और अनुचित व्यवहार व कटु शब्द बने हुए काम को बिगड़ भी सकते हैं.
जिस व्यक्ति का स्वभाव श्रेष्ठ होता है, उसके संबंध सभी से अच्छे होते हैं. इसके विपरीत जिसका स्वभाव अच्छा नहीं होता, लोग उससे कटने लगते हैं. ऐसे लोगों के लिए सफलता की राह बेहद मुश्किल हो जाती है, इसलिए सफलता की चाह रखने वाले लोगों को हमेशा अपना व्यवहार अच्छा रखना चाहिए. चाणक्य कहते हैं कि हर मनुष्य को अपना श्रेष्ठ स्वभाव बनाए रखना चाहिए.
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपनी शक्ति और सामथ्र्य का भी ठीक-ठीक अनुमान होना चाहिए. वर्तमान में ज्यादातर लोग एक-दूसरे को देखकर अपना लक्ष्य चुन लेते हैं, लेकिन उचित सामथ्र्य व प्रतिभा न होने के कारण वे असफल हो जाते हैं. परिणामस्वरूप उनके भीतर हीन भावना आ जाती है और वे अपने जीवन से निराश हो जाते हैं. प्रत्येक मनुष्य को अपनी रुचि व प्रतिभा का आंकलन करने के बाद ही अपना लक्ष्य तय करना चाहिए.
यह जरूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र में सफल है, तो आप उसकी सफलता से प्रभावित होकर उसी क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाएं और आप भी उसकी तरह सफल हो जाएं. प्रत्येक व्यक्ति में कोई-न-कोई विशेष गुण होता है, इसलिए लक्ष्य तय करने से पहले सभी को अपने भीतर छुपे इस विशेष गुण की पहचान करनी चाहिए. जीवन-प्रबंधन में कर्म एक महत्त्वपूर्ण कारक है.
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