कृपा

Last Updated 06 May 2017 04:57:02 AM IST

कोई भी दूसरा उपाय नहीं है, कृपा एकमात्र उपाय है. इसे न्यूटन ने इसे इस तरह प्रस्तुत किया-यह कहने का एक तरीका भर है-उसने एक सेब को पेड़ से नीचे गिरते देख कर एक पूरी थ्योरी दे दी कि कोई भी चीज कैसे नीचे गिरती है.


जग्गी वासुदेव

यह सच है कि एक सेब नीचे ही गिरता है, लेकिन पूरा पेड़ तो ऊपर की तरफ ही बढ़ता है.

गुरु त्वाकषर्ण वह है, जो आपको नीचे की ओर खींचता है और आपको रोककर रखता है यह आपके जीवन को बचाए रखने के लिए है. कृपा आपको अलग दिशा में, लगातार खींच रही है.

आपके भीतर दो मुख्य आयाम हैं एक तो खुद को बचाए रखने की प्रवृत्ति है, जो हमेशा आपको नीचे की ओर खींचती है, दूसरी असीम होने की आपकी चाहत है. असीम होने की इस चाहत को जो आगे ले जाती है, वह है कृपा. वह जो आपको लगातार कहती है, ‘यह सुरक्षित नहीं है, हमें सुरक्षित काम करने चाहिए’, यह खुद को बचाए रखने की चाहत है.’

हम क्यों कहते हैं कि एक किसी विशेष जगह पर कृपा पाने की एक खास संभावना होती है? क्योंकि भौतिक अस्तित्व की अपनी सीमा है; चाहे शरीर हो, धरती हो, सौरमंडल या पूरा ब्रह्माण्ड. भौतिकता सदा एक सीमा में बंधी रहती है, लेकिन इस भौतिकता को जो थामे रखता है, वह असीम है, अस्तित्व से परे, एक शून्य है. जो है, वही सृष्टि है. यह असीम शून्य, जो नहीं है, वह शिव है. जब हम कहते हैं, ‘शिव’, तो हम उस पहलू की बात कर रहे हैं जो आपको लगातार शून्य में खींच लेने की कोशिश कर रहा है.

आपका एक पहलू है जो अपने अस्तित्व को हमेशा बनाए रखना चाहता है, लेकिन आपका अस्तित्व भी एक निश्चित समय तक ही है. चाहे आप हों, यह ग्रह हो, यह सौरमंडल हो या संपूर्ण तारामंडल, ये सब अस्तित्व सीमित समय के लिए है. सब कुछ उसी कृपा से उपजा है और उसमें ही समा जाता है. आप जिसे शून्य कह रहे हैं, वही कृपा है. आप जिसे शिव कह रहे हैं, वह वही कृपा है.

हम जब कृपा के बारे में बात करते हैं, तब उसी कृपा के बारे में बात कर रहे होते हैं. अब सवाल यह है कि मैं इसे कैसे छू सकता हूं? अपने आसपास देखिए और अपने मामूली होने को महसूस कीजिए  मामूली या छोटा होने का मतलब ‘कुछ नहीं’ होना नहीं है, छोटा होना शून्य होने के पर्याप्त रूप से करीब है. आपको छोटा होने का दिखावा नहीं करना क्योंकि आप वास्तव में बहुत ही छोटे जीव हैं. आप केवल बड़ा होने का दिखावा कर रहे हैं.



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