आत्मबोध

Last Updated 13 Apr 2017 01:30:15 AM IST

शरीर अनेक सुख-सुविधाओं का माध्यम है, ज्ञानेन्द्रियों द्वारा रसास्वादन और कम्रेन्द्रियों के द्वारा उपार्जन करने वाला शरीर ही सांसारिक हषरेल्लास प्राप्त करता है.


श्रीराम शर्मा आचार्य

इसलिए इसे स्वस्थ, सुन्दर, सुसज्जित एवं समुन्नत स्थिति में रखना चाहिए. इसी दृष्टि से उत्तम आहार-विहार रखा जाता है, तनिक सा रोग-कष्ट होते ही उपचार कर ली जाती है. शरीर की ज्योति ही मस्तिष्क की उपयोगिता है. आत्मा की चेतना और शरीर की गतिशीलता का भौतिक व आत्मिक समन्वय का प्रतीक है, यह मन मस्तिष्क इसकी अपनी उपयोगिता है.

मन की कल्पना, बुद्धि का निर्णय, चित्त की आकांक्षा और अहन्ता की प्रवृत्ति इन चारों से मिलकर अन्त:करण चतुष्टय बना है. सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा, दीक्षा द्वारा मस्तिष्क को विकसित एवं परिष्कृत करने के लिए हमारी चेष्टा निरन्तर रहती है क्योंकि भौतिक जगत में उच्चस्तरीय विकास एवं आनन्द उसी के माध्यम से सम्भव है.

शरीर को समुन्नत स्थिति में रखने के लिए पौष्टिक आहार, व्यायाम, विनोद आनन्द आदि की अगणित व्यवस्थाएं की गई हैं. मस्तिष्कीय उन्नति के लिए स्कूल, कॉलेज, प्रशिक्षण केन्द्र, गोष्ठियां, सभाएं विद्यमान हैं. पुस्तिकाएं, रेडियो, फिल्म आदि का सृजन किया गया है, जिससे कि मस्तिष्कीय समर्थता बढ़े.

संसार में जो कुछ भी हो रहा है. यहां उसकी निन्दा या प्रशंसा नहीं की जा रही है. ध्यान उस तथ्य की ओर आकषिर्त किया जा रहा है जो इस सबसे अधिक उत्कृष्ट एवं आवश्यक था, उसे एक प्रकार से भुला ही दिया गया. समझ यह लिया गया है कि मनुष्य जो कुछ है, वह शरीर और मन तक की सीमित है. इससे आगे, इससे ऊपर और कोई हस्ती नहीं.

यदि इससे ऊपर भी कुछ समझा गया होता तो उसके लिए भी जीवन क्रम में वैसा ही स्थान मिलता, जैसा शरीर और मन के लिए होता है, पर हम देखते हैं वह तीसरी सत्ता जो इन दोनों से लाखों, करोड़ों गुनी अधिक महत्त्वपूर्ण है, एक प्रकार से उपेक्षित विस्मृत ही पड़ी है और वह लाभ और आनन्द जो अत्यन्त सुखद एवं समर्थ है, एक प्रकार से अनुपलब्ध ही रहा है. रोज ही यह कहा और सुना जाता है कि हमारे शरीर और मन से ऊपर आत्मा है.   



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