सहज जीना

Last Updated 14 Apr 2017 12:50:02 AM IST

जीवन का आदर्श क्या है? एक युवक ने यह सवाल पूछा है. रात्रि घनी हो गयी है और आकाश तारों से भरा है.


आचार्य रजनीश ओशो

हवाओं में आज सर्दी है और शायद कोई कहता था कि बरसात के साथ कहीं ओले पड़े हैं. राह निर्जन है और वृक्षों के तले घना अंधेरा है. यह दूर दूर तक सन्नाटा बनाता है और कि इस शांत शून्य-घिरी रात्रि में जीना कितना आनंदमय है.

होना मात्र ही कैसा आनंद है, पर हम ‘मात्र जीना’ नहीं चाहते हैं. हम तो किसी आदर्श के लिए जीन चाहते हैं. जीवन को साधन बनाना चाहते हैं, जो कि स्वयं साध्य है. यह आदर्श दौड़ सब विषाक्त कर देती है. कुंठित कर दे ती है. यह आदर्श का तनाव जीवन का सब संगीत तोड़ देता है. गड़बड़ कर देता है. बिगाड़ देता है.

महान सम्राट अकबर ने एक बार अपने दरबारी मित्र तानसेन से पूछा था, ‘तुम अपने गुरु  जैसा क्यों नहीं गा पाते हो? तुम्हारे गुरु में कुछ अलौकिक दिव्यता है. उसको पकड़ने की कोशिश तुम भी करते.’ उत्तर में तानसेन ने कहा था,‘वे केवल गाते हैं. गाने के लिए गाते हैं. अपनी तरंग आने पर गाते हैं.

नहीं आने पर यों ही रह जाते हैं. पर मैं? मेरे गाने में सहज आनंद की जगह एक सचेष्ट उद्देश्य है.’ मैं अब तुमसे कहता हूं, किसी क्षण केवल जीकर देखो. केवल जीओ. जीवन से लड़ो मत, छीना-झपटी न करो. चुप होकर देखो, क्या होता है! जो होता है, उसे होने दो. ‘जो है’ उसे होने दो. अपनी तरफ से सब तनाव छोड़ दो और जीवन को सहज भाव से बहने दो.

जीवन को समय में घटित होने दो और जो घटित होगा, मैं विश्वास दिलाता हूं कि वह मुक्त कर देता है. आदर्श का भ्रम सदियों पाले गये अंधविश्वासों में से एक है.रूढ़ियों की जकड़न है. जीवन किसी और के लिए, कुछ और के लिए नहीं, बस अपने जीने के लिए है. जो ‘किसी लिए’ जीता है, वह जीता ही नहीं है. जो केवल जीता है, वही जीता है. और वही उसे पा लेता है, जो कि पाने जैसा मकसद है.

वही जीवन के असल आदर्श को भी लेता है. इसके बाद मैं उस युवक की ओर देखता हूं. उसके चेहरे पर एक अद्भुत शांति फैल गयी है. वह कुछ बोलता नहीं है, पर सब बोल देता है. कोई एक घंटा मौन और शांत बैठकर वह गया है. वह पूरी तरह बदलकर गया है. जाते समय उसने कहा भी है,‘मैं दूसरा व्यक्ति होकर जा रहा हूं.’ अब वह जीवन को उसी रूप में जीएगा.



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