दुख से मुक्ति
दुखी होने से बचने से पहले तुम्हें यह समझ लेना आवश्यक होना कि दुख और सुख क्या है? यह कैसा भूत है, जो दिखता नहीं, लेकिन सबों को परेशान किया हुआ है.
सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो) |
जिस प्रकार भूत दिखता नहीं, लेकिन भूतों की अनेक कहानियां लिखी जा रही हैं, यहां तक कि आजकल कई फिल्में भी बन रही हैं. बचपन में हमलोग नानी से भूतों की कहानी सुनते थे. जब थोड़े बड़े हुए तो लगा कि ये सब अंधविश्वास है, भूत कहीं नहीं होता, लेकिन जब बड़े-बड़े उन्नत देशों को भूतों पर फिल्म बनाते देखता हूं तो लाख अपने को विद्वान मानने की घोषणा करने पर भी कभी-कभी सोचना पड़ता है कि जब सारे लोग भूतों पर कहानियां लिख रहे हैं तो कहीं-न-कहीं भूत को होना चाहिए.
लेकिन, बड़े आश्चर्य की बात है कि आज तक न कहानी लिखनेवालों ने और न फिल्म बनानेवालों ने भूत को कहीं देखा, लेकिन उनकी तमाम फिल्में शानदार ढंग से चल रही हैं. ठीक उसी प्रकार आज तक किसी ने भी न सुख को देखा है, न दुख को. फिर भी सारी दुनिया के लोग इस दुख के भय से परेशान, निराश और जीवन से हताश हो रहे हैं. सुख और दुख मनुष्य की मानसिक अनुभूति है.
अनुभूति इसलिए कि हम सुख और दुख का अनुभव करते हैं, दुख की आशंका का अनुभव करते हैं, फिर सुख की प्रसन्नता का अनुभव करते हैं. इन दोनों भावों को हम मन से अनुभव करते हैं और उसी अनुभव के आधार पर हम आचरण करने लगते हैं.
दुख की आशंका से ग्रस्त होकर चिंता में पड़ जाना, भय से कांपना, जीवन से हताश हो जाना और कभी-कभी तो मनुष्य दुख की आशंका से आत्महत्या भी कर लेता है, क्योंकि जब तक मनुष्य के मन में ऐसे विचार रहते हैं तब तक वह दुख के भव से और कितनी गलतियां कर चुका होता है.
यह सब हम दुख की आशंका से करते हैं. दुख आने के भय से हम कांपने लगते हैं, यही दुख की परिभाषा है. जो है ही नहीं, उसकी आशंका से भयातुर होकर असहाय बनकर बैठा जाना वही दुख के आने की पूर्व की प्रक्रिया है, क्योंकि आज तक किसी ने भी दुख को डंडा लेकर दरवाजे पर खड़ा नहीं देखा.
यह बड़े आश्चर्य की बात है, जिसे हमने कभी देखा हो नहीं, और न कभी देखने की संभावना है, उसके भय से कांपना ही दुख की परिभाषा है. ठीक उसी प्रकार सुख को भी आजतक किसी ने कहीं देखा, लेकिन सुख के अनुभव से हम पहले ही प्रसन्न हो जाते हैं.
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