जानिए, पितरों के पिण्डदान में काला तिल और कुश का क्या महत्व है
पितरों को तृप्त करने तथा देवताओं और ऋषियों को काले तिल‚ अक्षत मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण में काला तिल और कुश का बहुत महत्व होता है।
पिण्डदान में काला तिल-कुश का महत्व (प्रतिकात्मक फोटो) |
पितरों के तर्पण में तिल‚ चावल‚ जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है। श्राद्ध करने वालों को पितृकर्म में काले तिल के साथ कुशा का उपयोग महत्वपूर्ण है।
मान्यता है कि तर्पण के दौरान काले तिल से पिंडदान करने से मृतक को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि तिल भगवान के पसीने से और कुशा रोम से उत्पन्न है इसलिए श्राद्ध कार्य में इसका होना बहुत जरूरी होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि काला तिल भगवान विष्णु का प्रिय है और यह देव अन्न है इसलिए पितरों को भी तिल प्रिय है तथा काले तिल से ही श्राद्धकर्म करने का विधान है। अथर्ववेद के अनुसार तिल तीन प्रकार के श्वेत‚ भूरा और काला जो क्रमशः देवता‚ ऋषि एवं पितरों को तृप्त करने वाला माना गया है।
मान्यता है कि बिना तिल श्राद्ध किया जाए तो दुष्ट आत्माएं हवि को ग्रहण कर लेती हैं। प्रयागराज स्थित श्री देवरहवा बाबा सेवाश्रम पीठ के वाचस्पति प्रपन्नाचार्य ने शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि तर्पण में तिल व कुशा का विशेष महत्व है।
वायु पुराण के अनुसार तिल और कुशा के साथ श्रद्धा से जो कुछ पितरों को अर्पित किया जाता है वह अमृत रूप होकर उन्हें प्राप्त होता है। पितर किसी भी योनि में हों उन्हें वह सब उसी रूप में प्राप्त होता है। तिल और कुश दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं और पितरों को भी भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है।
तिल तीन प्रकार के श्वेत‚ भूरा व काला जो क्रमशः देवता‚ मनुष्य व पितरों को तृप्त करने वाला होता है। काला तिल भगवान विष्णु का प्रिय है और यह देव अन्न है इसलिए पितरों को भी तिल प्रिय है इसलिए काले तिल से ही श्राद्धकर्म करने का विधान है।
मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाए‚ तो दुष्ट आत्माएं ग्रहण कर लेती हैं। माना जाता है तिल का दान कई सेर सोने के दान के बराबर होता है। इनके बिना पितरों को जल भी नहीं मिलता।
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