त्वरित टिप्पणी : शिवसेना के सियासी सपनों पर सर्जिकल स्ट्राइक!

Last Updated 24 Nov 2019 01:45:11 AM IST

सही अर्थों में बड़ा नेतृत्व देने वाला व्यक्ति वही होता है जो अपने नीचे छोटे-छोटे लीडर्स की पहचान करके उन्हें अगली कतार में लाकर खड़ा करता है।


त्वरित टिप्पणी : शिवसेना के सियासी सपनों पर सर्जिकल स्ट्राइक!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में जब देवेंद्र फडणवीस के नाम का चयन किया था तब पक्के तौर पर ये पता नहीं था कि देवेंद्र फडणवीस बतौर मुख्यमंत्री कितने सफल होंगे। लेकिन पांच साल बाद जब महाराष्ट्र में चुनाव हुए और त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तब तमाम अटकलों के बावजूद बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना के लामबंद होने के बाद जिस तरीके से देवेंद्र फडणवीस ने गठबंधन के बीच में एक नया गठबंधन करके केंद्रीय नेतृत्व को विश्वास में लेते हुए जिस दमदारी से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उससे कांग्रेस-शिवसेना दोनों को एक ही प्रहार में चारों खाने चित कर दिया।

24 अक्टूबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद जिस तरीके से शिवसेना ने बीजेपी के खिलाफ अपना अभियान चलाया और कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन का एक अलग माडल पेश किया उससे साफ हो गया था कि बीजेपी के सामने अब डेड एंड जैसी स्थिति बन गई है। लेकिन डेड एंड के बाद भी सत्ता की सीढ़ी तक अपने लिए रास्ता तलाश लेने के अंसभव से कार्य को देवेंद्र फडणवीस ने संभव कर दिखाया है। तमाम राजनीतिक विशेषज्ञ जब ये मान चुके थे कि अगली सुबह शिवसेना अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनाने जा रही है और इसी नजरिए से अखबारों की हेडलाइन्स तय हो चुकी थीं तब देवेंद्र फडणवीस ने वो किया जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। ये कारनामा था अखबारों को छपते ही रद्दी में तब्दील कर देना। सुबह अखबारों में महाराष्ट्र के बारे में लोग खबरें कुछ और पढ़ रहे थे जबकि इन तमाम आकलनों के उलट वहां कुछ ऐसा घटित हो चुका था जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।

कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। इस खेल में जो अपने सपनों में हकीकत का रंग भरने में कामयाब होता है, भविष्य का राजनीतिक आख्यान भी उसी के ईर्द-गिर्द रचा जाता जाता है। शुचिता और नैतिकता के राजनीति के अपरिहार्य अंग होने के बावजूद राजनीतिक दांव-पेंच के निकष पर खरा उतरकर जो सत्ता को साधने में कामयाब होता है, इतिहास के पन्नों में दर्ज भी वही हो पाता है। हालांकि महाराष्ट्र के संबन्ध में नैतिकता के निकष पर भी शिवसेना अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर हर पल सवालों के घेरे में रही। बीजेपी का यह आरोप अनायास नहीं था कि निहित स्वार्थो के लिए शिवसेना ने बीजेपी के साथ 30 साल पुराने गठबंधन को न सिर्फ  एक झटके में तोड़ दिया बल्कि धुर राजनीतिक विरोधियों के साथ मिलकर नई संभावना तलाशने की पुरजोर लेकिन नाकाम कोशिश की। जिस शिवसेना की बुनियाद ही कांग्रेस-एनसीपी के विरोध पर टिकी हुई थी, उस शिवसेना का बीजेपी नेतृत्व पर यह आरोप लगाना कि उसने राष्ट्रपति शासन की आड़ में विधायकों की खरीद-फरोख्त करने की कोशिश की, कहीं से भी तर्कसंगत नहीं दिखता। महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी-शिवसेना ने साथ मिलकर सीटों के बंटवारे पर समझौता किया, चुनाव जीतने में सक्षम उम्मीदवारों का चयन किया, चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। लेकिन रिजल्ट के तुरंत बाद बीजेपी से कम सीटें हासिल करने के बावजूद शिवसेना का मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोकना किसी भी नजरिए से बड़े दल के लिए ग्राह्य नहीं था। ऐसे में महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कवायद नैतिकता और सिद्धांतों की बजाय सिर्फ और सिर्फ सियासी पैंतरों और विस्त सहयोगी तलाशने के दांवपेंच पर टिकी हुई थी। कहना न होगा कि बीजेपी नेतृत्व और खासतौर पर देवेंद्र फडणवीस ने इस सियासी खेल में शिवसेना और उसके सहयोगियों को मात देने में कामयाबी हासिल कर ली।

रात भर चले इस सियासी खेल के उलटफेर पर अगर हम नजर डालें तो जो तस्वीर उभरकर सामने आती है उसके मुताबिक शुक्रवार रात 9:30 बजे के आसपास देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास सरकार बनाने का दावा पेश करने पहुंचे। फडणवीस ने अपने पास 173 विधायकों के समर्थन होने का दावा किया। इस दावे में देवेंद्र फडणवीस ने 54 एनसीपी और 14 निर्दलीय विधायकों के समर्थन की बात कही। इस मुलाकात के ढाई घंटे बाद तकरीबन 12:00 बजे एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार राज्यपाल के पास एनसीपी के 54 विधायकों के हस्ताक्षर की सूची लेकर पहुंचे। अजित पवार ने अपना समर्थन बीजेपी को देने का पत्र राज्यपाल को सौंपा। इसके फौरन बाद रात 12:30 बजे ही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य में लोकतांत्रिक सरकार के गठन का रास्ता साफ करने के लिए केंद्र को राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश भेज दी। केंद्र ने इस सिफारिश का संज्ञान लेते हुए सुबह तकरीबन 5.30 बजे राज्य में लगा राष्ट्रपति शासन हटाने की जानकारी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को दे दी। तेजी से बदल रहे इस घटनाक्रम के बीच सुबह 6:00 बजे के आसपास राज्यपाल ने सुबह देवेंद्र फडणवीस सरकार की शपथ कराने का निर्णय ले लिया। उधर 6:30 बजे राज्यपाल को देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार के शपथ ग्रहण कराने की अर्जी भेजी गई। इस अर्जी में सुबह के समय ही शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करने का निवेदन किया गया। जिसके बाद राज्यपाल ने सुबह 8:07 बजे देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कराई।

अब महाराष्ट्र में सियासी अनिश्चितताओं के दौर का पटाक्षेप हो चुका है। सूबे में अब एक चुनी हुई सरकार है जिसे 30 नवंबर तक विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करना है। हालांकि इस विषय को लेकर भी पक्ष-विपक्ष में घमासान जारी है। शिवसेना पूरे दमखम के साथ दावा कर रही है कि ये सरकार अपना बहुमत हर्गिज साबित नहीं कर पाएगी तो वहीं कांग्रेस की तिलमिलाहट अभिषेक मनु सिंघवी के इस ट्वीट से साफ जाहिर हो रही है ‘वो जो कहते थे कि हम न होंगे जुदा, बेवफा हो गए देखते-देखते।’ इससे एक बात तो साफ है कि शिवसेना-कांग्रेस में सहयोगियों को लेकर लंबे समय तक आत्ममंथन के साथ-साथ शिकवा-शिकायत का दौर जारी रहेगा जबकि महाराष्ट्र के लोकप्रिय नेता के रूप में देवेंद्र फडणवीस के सामने सूबे के हर तबके की खुशहाली सुनिश्चित करने की चुनौतियां होंगीं। फडणवीस की अब तक की उपलब्धियों के मद्देनजर यह साफ दिखता है कि वो महाराष्ट्र की जनता का सुनहरा भविष्य गढ़ने में पूरी तरह से सफल साबित होंगे।

विगत पांच वर्षों में तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच राजनीतिक हलके में देवेंद्र फडणवीस की पहचान उनके सौम्य, सुशील और शांत व्यक्ति के रूप में रही है, एक ऐसे राजनेता की रही है जिससे सूबे के हर वर्ग का व्यक्ति सीधा जुड़ाव महसूस करता है। किसान को लगता है कि वो किसी किसान के बेटे हैं जो अपनी प्रतिभा के बल पर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं, तो वहीं छात्रों को लगता है कि उनकी बात कर रहे हैं, महिलाओं को लगता है कि भारतीय राजनीति में फडणवीस एक सौम्य एवं सुलझे हुए नेता हैं जो महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं, उद्योगपति ये मानकर चलता है कि वो उनके सबसे अच्छे प्रतिनिधि है, जो उनकी बात केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाते रहे हैं। उन्होंने औद्योगिक विकास के लिए महाराष्ट्र एवं देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में अच्छा माहौल तैयार किया। अपने पिछले कार्यकाल में ईमानदार छवि को बरकरार रखने में वो इस हद तक सफल रहे कि पूरे पांच वर्षो के चुनौतीपूर्ण माहौल में भी उनके ऊपर किसी भी तरह का कोई आरोप नहीं लग पाया। ऐसे में कहा जा सकता है कि अपने अगले पांच वर्षो के कार्यकाल में वो नि:संदेह बड़ी उपलब्धियों की एक लंबी लकीर खींचने में कामयाब होंगे।

उपेन्द्र राय


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