दृढ़ इच्छाशक्ति से बदल गई ’जन्नत‘ की फिजा

Last Updated 03 Nov 2019 12:01:29 AM IST

आजाद भारत के पहले गृह मंत्री लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का नये केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आना केवल संयोग मात्र नहीं है।


दृढ़ इच्छाशक्ति से बदल गई ’जन्नत‘ की फिजा

देश के मौजूदा नेतृत्व की अटूट देशभक्ति और फौलादी इच्छाशक्ति भी इस ऐतिहासिक कामयाबी की पात्र है। आजादी के बाद सरदार पटेल ने देश की रियासतों का विलय कर पूरी दुनिया में भारत की एकता का डंका बजाया था। लेकिन कश्मीर का भी देश में विलय करने का सरदार पटेल का सपना तत्कालीन हुक्मरानों की अवसरवादिता के कारण पूरा नहीं हो पाया था। सात दशक बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार के उन्हीं अटल इरादों पर कदम बढ़ाते हुए जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए की बेड़ियों से आजाद करने का काम किया है।

देश की कई पीढ़ियां ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है’ का नारा लगाते हुए खाक हो गई। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सरकारें 70 साल तक यह साबित करने के लिए एड़ियां घिसती रहीं कि कश्मीर भी बाकी राज्यों की तरह भारत का आंतरिक मसला है। इसके बावजूद दुनिया का संशय दूर नहीं हुआ। लेकिन इस क्रांतिकारी फैसले के बाद अब दुनिया खुद मंजूर कर रही है कि कश्मीर किसी और का नहीं, भारत का ही सिरमौर है। देश की आने वाली पीढ़ियां इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाएंगी कि जिस देश की गौरवगाथा दसों दिशाओं में गूंजती थी, उसी देश में एक राज्य ऐसा भी रहा जो देश का अपना होकर भी पराया ही रहा, जिसका अपना अलग प्रधान था, देश से अलग संविधान था, जहां तिरंगे का खुलेआम अपमान था, और जहां की जमीन को अपना कहना बाकी देशवासियों के लिए गुनाह था। यह धारा 370 का ‘प्रताप’ था जिसकी ताप में हमारा देश सात दशक तक सुलगता रहा।

एक देश में दो प्रधान, दो विधान और दो निशान वाले इस प्रावधान से लड़ते हुए जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने जीवन तक का बलिदान कर दिया। इस धारा की आड़ में आतंकी घटनाओं ने घाटी में विकास को ही नहीं रोका, हमारी सेना के हजारों जवानों और आम कश्मीरियों की जिंदगियों पर भी ग्रहण लगा दिया। घाटी से हजारों की तादाद में हिंदू पंडितों को निर्वासन तक झेलना पड़ा। लेकिन प्रखर राष्ट्रवाद की मिसाल पेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नासूर बन चुके अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाकर न केवल सरदार पटेल के सपने को सच किया और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को अंतिम मुकाम तक पहुंचाया, बल्कि घाटी के लोगों और सैन्य बलों की शहादत का भी सम्मान किया है।

अनुच्छेद 370 हटाने की रूपरेखा मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण के बाद से ही तैयार होने लगी थी। साल 2019 के आम चुनाव के लिए बीजेपी ने जो घोषणा पत्र जारी किया था, उसमें छह बार धारा 370 का उल्लेख था। चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा और जीता गया और क्योंकि जम्मू-कश्मीर इसके केंद्र में रहा, इसलिए वादा निभाने का आगाज वहीं से होना तर्कसंगत भी था। दिलचस्प यह रहा कि अनुच्छेद 370 हटाने के लिए केंद्र सरकार ने इसी धारा के प्रावधानों का सहारा लिया। मतलब कि सरकार ने जहर से ही जहर की काट तैयार कर दी। अनुच्छेद 370 का सेक्शन 3 राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष दरजा किसी भी वक्त निष्क्रिय करने या किसी अपवाद और संशोधन के साथ सक्रिय करने का अधिकार देता है। राष्ट्रवाद के जोश के साथ-साथ कानूनी बारीकियों का होश से इस्तेमाल कर सरकार ने इस कदम को अदालत में चुनौती देने की मंशा रखने वालों के इरादे भी पहले ही पस्त कर दिए।

सत्तर साल पुरानी बीमारी का एक झटके में इलाज आसान नहीं था। एक तरफ विपक्षियों का विलाप, दूसरी ओर आतंकियों का संताप। लेकिन घाटी में सरकार की रणनीतिक सूझबूझ और दिल्ली में मजबूत राजनीतिक जमावट ने विरोध की हर आवाज को नेस्तनाबूद कर दिया। सरकार ने कर्फ्यू लगाकर जम्मू-कश्मीर की आम जनता को आतंकियों का निशाना बनने से बचाया और राज्य के नेताओं को नजरबंद कर भड़काऊ बयानों से माहौल खराब करने की साजिश को नाकाम कर दिया। सरकार की एक देश, एक संविधान की सोच ने पूरे देश को एकता के सूत्र में भी बांध दिया। जब कश्मीर की आजादी के इस आंदोलन में देश की जनता एक साथ खड़ी दिखी, तो सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे दिल्ली में बैठे विपक्षी दल भी कश्मीर की नियति का रोना रोने से ज्यादा कुछ नहीं कर सके।

यही हाल पाकिस्तान का भी हुआ। अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को संयुक्त राष्ट्र ले जाकर उसने इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। बरसों से पाकिस्तान के आका बने अमेरिका ने इसे भारत का आंतरिक मसला बताकर उसे फटकारा, तो अपने फायदे के लिए उसके दोस्त बने चीन ने भी पल्ला झाड़ लिया। यहां तक की मलयेशिया और तुर्की को छोड़कर मुस्लिम देश भी भारत के खेमे में खड़े दिखे।

इसी सप्ताह ग्राउंड जीरो का दौरा करके लौटे यूरोपीय सांसदों के दल ने भी कश्मीर में शांति बहाल करने और आतंक के खिलाफ भारत सरकार की दृढ़ कोशिशों के साथ एकजुटता दिखाई है। बेशक, भारत को देश की सीमा के भीतर उठाए किसी कदम के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है, लेकिन यूरोपीय डेलिगेशन के बेबाक समर्थन से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के जो भी मद्धम स्वर उठ रहे हैं, उन्हें भी पूरी तरह से खत्म हो जाना चाहिए।

जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में अब वक्त बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में देश ने दुनिया के नक्शे पर नई इबारत लिख दी है, अब बारी कश्मीर में विकास की नई इमारत खड़ी करने की है। इसके लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर निवेश की तैयारी भी शुरू कर दी है। यह निवेश कश्मीर में विकास और यहां की जनता में विश्वास बहाल करेगा। साथ ही हथियार उठाने के लिए उकसाए गए कश्मीर के युवाओं को रोजगार से जोड़ने का भी काम करेगा, जो कश्मीर को सच्चे अथरे में देश से जोड़ने के सरदार पटेल के सपने और उसे दुनिया की जन्नत बनाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा को साकार करेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अनुच्छेद 370 को भारतीयों के बीच अस्थायी दीवार और कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद की जड़ बताते रहे हैं। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से उन्होंने देश को भरोसा दिलाया कि 70 साल पुरानी धारा 370 की दीवार गिराए जाने के बाद कश्मीर की धरा पर अब एकता और विकास की नई धारा शुरू होगी। दूसरे अथरे में उनका संबोधन अंग्रेजों की गुलामी से देश की आजादी के वक्त सरदार पटेल के देखे गए सपने और अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से कश्मीर की आजादी के दौर में आज के ‘सरदार’ के संकल्प का इशारा है।

उपेन्द्र राय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment