माहवारी : ना रहे संकोच, खुलकर करें बात

Last Updated 28 May 2025 09:18:46 AM IST

सदियों से एक लड़की की माहवारी ऐसा विषय रहा जिसे उसे छिपाना पड़ता था। फुसफुसाहटें, झिझक और चुप्पी-ये सब उस प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया के साथ जुड़ गई, जो हर लड़की और महिला के जीवन का हिस्सा है, लेकिन आज बिहार में यह खामोशी टूट रही है-और उसकी जगह ले रही है एक सशक्त आवाज।


माहवारी : ना रहे संकोच, खुलकर करें बात

मासिक धर्म स्वच्छता, जिसे अब तक सार्वजनिक नीति और सामाजिक दायरे के बाहर रखा गया था, अब हमारे स्कूलों, सामुदायिक भवनों, सरकारी कार्यालयों और सबसे महत्त्वपूर्ण  हमारे घरों में प्रवेश कर रही है। यह सिर्फ  सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता या शौचालयों की सुविधा की बात नहीं है-यह एक सामाजिक परिवर्तन है, जो हमारी बेटियों और महिलाओं के प्रति हमारे व्यवहार को सिरे से बदल रहा है। देश-समाज के लिहाज से इस बदलाव के बहुत मायने है। क्योंकि अगर लड़कियां गरिमा के साथ अपनी माहवारी को संभाल सकती हैं, तो वे स्कूल में आसानी से पठन-पाठन कर सकती हैं। जब महिलाओं को स्वच्छता की सुविधा मिलती है, तो वे पूरी क्षमता से कार्यस्थल, समाज और जीवन में अपने दायित्वों का निर्वाहन करती है। 

जब समुदाय बेझिझक, बिना शर्म के मासिक धर्म पर खुलकर बातचीत करता है तो इसका सकारात्मक प्रभाव शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता पर तो पड़ता ही है यह समाज बनने के रूप में भी फलीभूत होता है। दरअसल, यह केवल स्वच्छता की ही नहीं बल्कि न्याय की भी बात है। इस लिहाज से बिहार की प्रगति उल्लेखनीय है। भारत सरकार की मासिक धर्म स्वच्छता योजना और बिहार सरकार के समर्पित प्रयासों के तहत, राज्य में स्वच्छ तरीकों से माहवारी प्रबंधन करने वाली युवतियों की संख्या (NFHS-4) के 31% से बढ़कर (NFHS-5) में लगभग 59% हो गई है, यानी दोगुनी। यह प्रगति राष्ट्रीय औसत (57.6% से 77.3%) की तुलना में भी उल्लेखनीय है। 

ये महज आंकड़ें नहीं हैं बल्कि हमारे सामूहिक प्रयासों की पहचान है। वे सामूहिक प्रयास जिसमें फ्रंटलाइन आशा कार्यकर्ता, शिक्षक, माता-पिता और खुद लड़कियों की सहभागिता से ही बदलाव संभव हुआ है। ये उपलब्धियां शानदार हैं, लेकिन अभी हमारा काम पूरा नहीं हुआ है। सुलभ सैनिटेशन मिशन के हालिया अध्ययन (2023-24) के अनुसार, खगड़िया और कटिहार में आधे से अधिक महिलाओं को अपने पिछले मासिक चक्र में आवश्यक साधन उपलब्ध नहीं थे, और 62% के पास उन्हें सुरक्षित रूप से फेंकने की जगह तक नहीं थी। ये आंकड़े केवल सेवाओं की कमी को नहीं दर्शाते, बल्कि एक गहरे मसले को उजागर करते हैं: महिलाओं के पास अपनी सुविधा और जरूरत के अनुसार विकल्प चुनने की आजादी नहीं है, उन्हें गरिमा से जीने का अधिकार नहीं मिलता, और उनकी आवाज समाज में सुनी नहीं जाती। 

इसीलिए बिहार का मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन रोडमैप (202225) केवल एक नीति नहीं-यह एक वादा है। यह एक ऐसा समन्वित प्रयास है जिसमें मासिक धर्म को एक ‘साइड इश्यू’ नहीं, बल्कि न्यायसंगत बिहार की परिकल्पना का मूल माना गया है। इसमें स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा से जुड़ता है, ग्रामीण विकास स्वच्छता के साथ मिलकर काम करता है। इसी का परिणाम है कि जमीनी स्तर पर वास्तविक परिवर्तन संभव हो पाया है। यूनिसेफ के सहयोग से स्कूलों में हमने ‘सहेली कक्ष’ की शुरुआत की है। सहेली कक्ष दरअसल ऐसा सुरक्षित स्थान है जहां लड़कियां विश्राम कर सकें, कपड़े बदल सकें और आत्मविश्वास के साथ अपनी माहवारी का प्रबंधन कर सकें। 

अररिया और पूर्णिया के 50 से अधिक सरकारी स्कूलों में यह कक्ष बन चुके हैं, इसके अलावा अन्य स्कूलों में कक्ष बन रहे हैं, लेकिन सुरक्षित स्थान केवल दीवारों तक सीमित नहीं-वे शिक्षकों, सहपाठियों और समुदाय के नजरिए में भी परिलक्षित होना चाहिए। हमने मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK) सरीखे कार्यक्रमों को भी मासिक धर्म स्वच्छता के लक्ष्यों से जोड़ने का प्रयास किया है। इन योजनाओं की क्षमताएं असीमित हैं, लेकिन तभी जब अंतिम छोर तक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता संग सेवाएं पहुंचे। नीति और जनता के बीच की दूरी कम होनी चाहिए। और यह केवल ‘महिलाओं का मुद्दा’ नहीं है। 

पुरुष और लड़के, पिता और भाई, शिक्षक और पंचायत प्रतिनिधि-हर आवाज महत्त्वपूर्ण है। जब वे आगे आते हैं, सुनते हैं, और साथ खड़े होते हैं, तो वे शर्म और संकोच के बंधन को तोड़कर विश्वास की डोर को मजबूत करते हैं। यही समावेशिता का असली चेहरा है। आगे बढ़ते हुए, यह सुनिश्चित करना होगा कि हर आंगनबाड़ी केंद्र में किशोरियों को सहयोग देने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी हों। हर स्वास्थ्य कार्यकर्ता माहवारी पर संवेदनशीलता और आत्मविश्वास से बात कर सके, और हर स्कूल माहवारी को जीवन का हिस्सा माने-कक्षा छोड़ने का कारण नहीं। रोडमैप विकसित होता रहेगा। योजनाएं परिणाम देती रहेंगी। क्योंकि यह केवल एक जैविक प्रक्रिया को प्रबंध करने की बात नहीं-यह संभावना को अनलॉक करने और एक ऐसे भविष्य की लड़ाई है, जहां कोई भी लड़की सिर्फ  इसलिए पीछे न रह जाए क्योंकि उसे माहवारी होती है।

बंदना प्रेयसी


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