सामयिक : न्याय तो जरूरी है
लालू प्रसाद यादव जी ने तेज प्रताप को परिवार और पार्टी दोनों से बाहर कर दिया है। उनका पूरा स्टैंड उनके अनुसार नैतिक आधार पर है। यानी सामाजिक न्याय में लोक आचरण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है और उनके बड़े सुपुत्र तेजप्रताप यादव ने इसका उल्लंघन किया है।
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इसी की सजा उनको दी गई है। निश्चित रूप से परिवार के लिए यह बहुत बड़ा धक्का है। किसी भी पिता और मां का अपने बड़े पुत्र को बाहर करने का निर्णय करना आसान नहीं होता।
इस नाते पहली दृष्टि में लालू जी और राबड़ी देवी जी के प्रति सहानुभूति का भाव पैदा होता है। किंतु वे कोई सामान्य परिवार नहीं है। जो कुछ भी हुआ उनमें ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिनका उत्तर सार्वजनिक जीवन खासकर राजनीति में होने के कारण उन्हें देना चाहिए। लालूजी का परिवार बिहार में इस समय सबसे ज्यादा अकेले प्रभावी राजनीतिक परिवार माना जा सकता है। यद्यपि वे विपक्ष में है किंतु बिहार में परिवार की दृष्टि से कोई ऐसा नहीं बचा जिनकी हैसियत उतनी बड़ी हो। दो पूर्व मुख्यमंत्री, एक उप मुख्यमंत्री, एक पूर्व मंत्री, एक सांसद और तीन विधायक। ऐसे परिवार के सबसे बड़े सुपुत्र की किसी लड़की के साथ लंबे रिश्तों की बात सामने आती है और वह अमर्यादित है तो इस पर बवाल मचेगा।
धीरे-धीरे ऐसा माहौल बना है जिसमें दो व्यक्तियों खासकर स्त्री-पुरुष के संबंधों पर लिखने और बोलने से हम आप बचना चाहते हैं। देश में एक अजीब किस्म के वामपंथी लिबरल सेक्युलर इकोसिस्टम ने खासकर स्त्री पुरु ष और उसमें भी विवाहेतर संबंधों को लेकर भी पढ़े-लिखे वर्ग के बीच ऐसा मानस तैयार किया है मानो यह भी उनका निजी मामला ही है। राजद का तर्क है कि लालू जी ने स्वयं स्टैंड ले लिया है तो इसके आगे कुछ कहने के लिए बचता नहीं। किंतु क्या वाकई इसे ही पूर्ण विराम मान लिया जाए? तेज प्रताप यादव के एक्स पर पोस्ट आता है जिसमें वह अनुष्का यादव से 12 वर्ष के अपने रिश्तों और लिव इन में रहने की बात स्वीकार करते हैं।
कहते हैं कि अब समय आ गया है जब मैंने सोचा इसे सार्वजनिक कर दिया जाए। बाद में वह पोस्ट डिलीट हो जाता है। उनका बयान आता है कि अकाउंट हैक हो गया था एवं एआई के द्वारा इसे लिखा गया। लालू यादव द्वारा उन्हें पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासन तथा परिवार से अलग करने की घोषणा ने स्पष्ट कर दिया कि पोस्ट की बातें सच हैं। अगर यह सच है कि परिवार को तेज प्रताप के इस अपकर्म की जानकारी नहीं थी और उन्होंने केवल सार्वजनिक जीवन में शुचितापूर्ण आचरण को निर्णय का मानक बनाया है तो उन्हें प्रशंसा का पात्र माना जाना चाहिए।
किंतु जितने तथ्य सामने हैं, उनके अनुसार लाल यादव से लेकर राबड़ी देवी और संपूर्ण परिवार को इस संबंध का पता था। तेज प्रताप की अभी तक कानूनी पत्नी, जिनके साथ उनका तलाक का मामला चल रहा है, कि मां ने कहा है कि इसमें नया कुछ नहीं सबको पता है। वैसे भी अगर 12 वर्ष से संबंध है तो फिर सात वर्ष पहले 2018 में लालू यादव जी और राबड़ी जी ने तेज प्रताप की ऐर्या यादव से शादी क्यों कराई? अभी अचानक तीसरा ऑडियो भी वायरल है।
इसमें बताया जा रहा है कि अनुष्का यादव की आवाज है। इसमें वह कह रही है कि निशा सिंह के साथ वो मालदीप जा रहा है। पुरु ष आवाज आती है ,कौन? उत्तर आता है, तेजप्रताप यादव। फिर कहा जाता है कि तेजस्वी यादव ने बच्चे के लिए भेजा है। पुरु ष पूछता है कि उसने कितनी शादी की है यार? उत्तर -ऐर्या यादव ,अनुष्का यादव और निशा यादव। यह सच है तो फिर तेज प्रताप यादव ने पूरे परिवार को संकट में फंसा दिया।
मोटा मोटी चार-साढ़े चार महीने बाद बिहार विधानसभा का चुनाव है। यह बात ठीक है कि लालू प्रसाद यादव के लंबे राजनीतिक करियर में कभी इस तरह के प्रश्न नहीं उठे। वे व्यक्तिगत तौर पर भ्रष्टाचार के प्रतीक अवश्य बने पर इस मामले में बेदाग रहे। जो कुछ है उससे वह भी कठघरे में खड़े हैं। आखिर सामाजिक न्याय का अर्थ क्या राजनीति में जातीय समीकरण और आरक्षण ही है? क्या जिस जाति के नेता होने का दावा करते हैं उनकी बच्चियों के साथ भी न्याय सामाजिक न्याय की परिधि में नहीं आता? यह प्रश्न इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि अनुष्का के भाई को राजद की छात्र इकाई का प्रमुख बनाया गया था। इस विषय के सामने आने के बाद उसे हटाया गया। इस घटना का राजनीतिक परिणाम क्या होगा, पूरा घटनाक्रम क्या मोड़ लेगा, तेज प्रताप, अनुष्का, ऐर्या है तो इनका जीवन किस ओर जाएगा इन सबके बारे में कोई भी अनुमान लगाना संभव नहीं। पर यह प्रकरण यूं ही समाप्त नहीं हो सकता।
पुत्र के पाप की सजा पिता, माता या परिवार को नहीं मिल सकती। यह तभी होगा जब परिवार बिल्कुल उससे अनिभज्ञ हो। लालू यादव और राबड़ी देवी का दायित्व बनता है कि इन लड़कियों के साथ खड़े हों। हां, अगर इन्होंने षडयंत्रपूर्वक तेज प्रताप को फंसाया है तो इसकी भी जांच होनी चाहिए। इस बीच दो बार परिवार सत्ता में आया और सब कुछ पारदर्शी था तो इसकी जांच कराई जानी चाहिए थी। संभव है ऐसा हुआ भी हो। इन लड़कियों के साथ खड़े होने की जगह परिवार ने तेजप्रताप को इनसे अलग करने और राजनीतिक आंच से बचने के लिए ही सारे प्रयास किए। केवल लालू जी की जाति ही नहीं दूसरों को भी पूछना चाहिए कि आखिर सामाजिक न्याय के नाम पर इस तरह उनके परिवार में क्यों हुआ? हमने हरियाणा में भजनलाल के पुत्र चंद्रमोहन के विवाहेत्तर प्रेम कथा में राजनीतिक करियर समाप्त होते देखा है। उनका उप मुख्यमंत्री पद तक प्रेम के कारण चला गया और बाद में पता चला कि उन्होंने अनुराधा बाली नामक वकील से शादी करने के लिए इस्लाम ग्रहण किया।
आज वह कहां है बहुत कम लोगों को मालूम है। तेजप्रताप उस अवस्था को प्राप्त होंगे या उनके साथ कुछ और होगा यह भविष्य के गर्भ में है। यह प्रकरण प्रमाण है कि राजनीति में शीर्ष परिवार के अंदर इस तरह के ऐसे संबंध पैदा होते हैं, जिन्हें नहीं संभाला गया तो बवंडर कई बार पूरे परिवार की राजनीति को समाप्त कर देता है। जब ऐर्या यादव विरोधियों के मंच से अपनी बात कह सकती हैं तो अनुष्का भी जा सकती है। राज्य और देश को भी हक है यह समझने का कि आखिर लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव आदि पूरा परिवार न्याय के कठघरे में कहां खड़ा है?
(लेख में विचार निजी है)
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