बेहतर मानसून : चहकेगी ग्रामीण आर्थिकी

Last Updated 25 Apr 2024 01:42:39 PM IST

हाल में एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के तेजी से बढ़ते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका है। बढ़ते कृषि उत्पादन और ग्रामीण बाजारों में मांग बढ़ने से निजी खपत में भी तेजी आ रही है।


बेहतर मानसून : चहकेगी ग्रामीण आर्थिकी

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और प्रमुख मौसम एजेंसी स्काईमेट ने कहा है कि अनुकूल मानसूनी मौसम के कारण इस वर्ष 2024 में भारत में अच्छी वष्रा के स्पष्ट संकेत खेती और भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार हाल में भारतीय रिजर्व बैंक  (आरबीआई) ने कहा है कि वर्ष 2024 में दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है, जिससे कृषि गतिविधियों में और तेजी आएगी। ग्रामीण बाजारों में भी मांग बढ़ने से अर्थव्यवस्था को तेज गति मिलेगी।

गौरतलब है कि विभिन्न रिपोटरे में कहा जा रहा है कि भारत के ग्रामीण अधिक खर्च कर रहे हैं। गांवों में न केवल कृषि संबंधी संसाधनों  की अधिक बिक्री हो रही है, वरन फ्रिज, दोपहिया वाहन और टीवी की खरीदारी भी उच्च स्तर पर है। यह सब ग्रामीण भारत में भविष्य के प्रति उत्साह और वर्तमान के बेहतर परिणामों का प्रतीक है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत में पिछले एक दशक में शहरी परिवारों के मुकाबले ग्रामीण परिवारों का खर्च तेजी से बढ़ा है। ग्रामीण भारत के विकास के लिए सरकारी योजनाओं के तहत किए गए भारी व्यय, ग्रामीणों के रोजगार की मनरेगा योजना तथा स्वरोजगार की ग्रामीण योजनाओं से ग्रामीण परिवारों की आमदनी में तेज इजाफे के साथ उनकी क्रय शक्ति और मांग में भारी इजाफा हुआ है। इससे ग्रामीण भारत की आर्थिक ताकत में वृद्धि हुई है।

यद्यपि अभी आम चुनाव के बाद जून, 2024 में गठित होने वाली नई सरकार के मूर्त रूप लेने में कोई दो माह बकाया हैं, लेकिन उच्च प्रशासनिक स्तर पर वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के मकसद से जिन क्षेत्रों के लिए आगामी पांच सालों के लिए प्रभावी रणनीति बनाई जाना शुरू की गई है, उनमें कृषि भी प्रमुख है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय पूरी दुनिया में भारत को खाद्यान्न का नया वैश्विक कटोरा माना जा रहा है। भारत दुनिया का तीसरा बड़ा खाद्यान्न उत्पादक है।

दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है। गेहूं तथा फलों के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर तथा सब्जी उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। विश्व स्तर पर भारत केला, आम, अमरूद, पपीता, अदरक, भिंडी, चावल,  चाय, गन्ना, काजू,  नारियल, इलायची और काली मिर्च आदि के प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता है। खाद्य प्रसंस्करण के मामले में भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। जहां कोविड-19 की आपदा से लेकर अब तक भारत वैश्विक स्तर पर दुनिया के जरूरतमंद देशों की खाद्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहा है, वहीं भारत ने दुनिया भर में कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ाने का अवसर भी मुट्ठियों में ले लिया है। भारत से कृषि निर्यात लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अनाज, गैर-बासमती चावल, बाजरा, मक्का और अन्य मोटे अनाज के अलावा फलों एवं सब्जियों के भारत से निर्यात में भी भारी वृद्धि दर्ज की गई है।

कई छोटे देशों के बाजार भी भारत की मुट्ठियों में आए हैं। इस समय दुनिया में कृषि निर्यात में भारत का स्थान सातवां है। भारत से करीब 50 हजार डॉलर से अधिक मूल्य का कृषि निर्यात होता है। खाद्य प्रसंस्करण में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां भारत से निर्यात में वृद्धि नहीं हुई हो। अब भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 12 लाख टन से बढ़कर दो सौ लाख टन हो गई है। पिछले नौ वर्षो में खाद्य प्रसंस्करण निर्यात में 15 गुना वृद्धि दर्ज की गई है। निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदाथरे की हिस्सेदारी 13 से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गई है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत पांच क्षेत्र हैं-डेयरी क्षेत्र, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण, अनाज का प्रसंस्करण,  मांस मछली एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण तथा उपभोक्ता वस्तुएं पैकेटबंद खाद्य और पेय पदार्थ। खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर के मामले में यह भी उल्लेखनीय है कि इन प्रमुख पांच क्षेत्रों की व्यापक संभावनाओं को मुट्ठियों में करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इससे ग्रामीण भारत लाभान्वित हो रहा है।  

यह बात महत्त्वपूर्ण है कि फरवरी, 2024 में भारत द्वारा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबूधाबी में आयोजित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा, खाद्यान्नों के सार्वजनिक भंडारण एवं न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) के स्थायी समाधान के लिए जिस तरह प्रभावी पहल की गई। इस कारण इस सम्मेलन में इन मुद्दों पर कई विकसित देश भारत के किसानों के हितों के प्रतिकूल कोई प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा पाए। ऐसे में अब भी भारत अपने किसानों के उपयुक्त लाभ के लिए नीतियां बनाते हुए खाद्य सुरक्षा एवं सार्वजनिक भंडारण की सुविधा से कृषि एवं ग्रामीण विकास के अभियान को आगे बढ़ा सकेगा।

यह भी उल्लेखनीय है कि 24 फरवरी, 2024 में  सरकार ने सहकारी क्षेत्र में दुनिया की जिस सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना के लिए प्रायोगिक परियोजना के तहत जिन 11 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को लक्षित किया  है, उनके माध्यम से पैक्स की किसानों के हित में बहुआयामी भूमिका होगी। ऐसे में नई खाद्यान्न भंडार योजना के माध्यम देश में खाद्यान्न भंडारण की क्षमता, जो  फिलहाल 1450 लाख टन है, को अगले 5 साल में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन की नई क्षमता विकसित करके 2150 लाख टन किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अभूतपूर्व खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था नये भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगी। हम उम्मीद करें कि लोक सभा चुनाव के बाद गठित होने वाली नई सरकार कृषि एवं ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी और इससे किसानों और ग्रामीण भारत के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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