मुद्दा : खात्मे की तरफ नक्सलवाद

Last Updated 25 Apr 2024 01:33:45 PM IST

कांकेर (छत्तीसगढ़) में पिछले दिनों केंद्रीय सुरक्षा बलों ने एक ऑपरेशन के तहत बड़ी संख्या में नक्सली मार गिराए। उनके पास से बड़ी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद बरामद हुए।


मुद्दा : खात्मे की तरफ नक्सलवाद

बहरहाल, कांकेर मुठभेड़ को लेकर कांग्रेस और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच जम कर वाकयुद्ध जारी है। देश विगत 70 वर्षो से नक्सल आतंक झेलता आया है। इसलिए समस्या को राजनीतिक चश्मे से देखने का कतई कोई औचित्य नहीं है?

समस्या को जड़ से मिटाने की राष्ट्रीय नीति के प्रति सभी को एक समान विचार रखने चाहिए। केंद्र सरकार ने बीते दस वर्षो से नक्सल उन्मूलन की नीति पर एक निरंतरता बनाई हुई है जिसके अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 2004-14 के यूपीए के दस सालों में नक्सली हमलों या मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों के 1,750 जवानों की शहादत हुई थी, लेकिन 2014-23 में इसमें करीब 72 फीसद तक कमी आई। इस दौरान सुरक्षा बलों के 485 जवानों की जान गई। इसी अवधि में नागरिकों की मौत की संख्या 68 फीसद घटकर 4,285 से 1,383 हुई। 2009 में यूपीए सरकार ने ऑपरेशन ‘ग्रीन हंट’ शुरू किया था। सीआरपीएफ को इसके लिए खास तरह के टास्क दिए गए।

यहां तक कि सेना को भी लगाया गया। लेकिन, ऑपरेशन ‘ग्रीन हंट’ सुरक्षा बलों के लिए ही काल बन गया। अप्रैल-2010 में नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में एक ही दिन सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या कर दी। घरेलू मोर्चे पर ऑपरेशन ‘ब्ल्यूस्टार’ के बाद सुरक्षा बलों की सबसे ज्यादा मौतों की यह घटना बन गई। यूपीए में अलग-अलग समय पर तीन गृह मंत्री बने-शिवराज पाटिल, चिदंबरम और सुशील शिंदे। नक्सलवाद पर तीनों की अलग-अलग राय थी। यूपीए सरकार में ही हिंसक नक्सलियों को गुमराह और नेक इरादे वाले लोगों के रूप में वर्णन किया गया। यूपीए सरकार ने ही मलकानगिरि के कलक्टर विनीत कृष्णा के बदले में आठ माओवादियों को रिहा किया। उसी दौरान माओवादी समर्थकों का एक पढ़ा-लिखा वर्ग भी तैयार हुआ जिन्हें आज अर्बन नक्सली कहा जाता है।

फिलहाल, केंद्र सरकार अब दावा करती है कि उसने हिंसक वाम आंदोलन और उग्रवाद के खिलाफ जोरदार अभियान छेड़ा है। 2015 में मोदी सरकार ने आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ ’राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना’ शुरू की थी जिसमें हिंसा के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात कही गई। किसी भी तरह की हिंसा से निपटने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण शुरू कर दिया। प्रशिक्षण के लिए विशेष तौर पर फंड जारी किए। सरकार ने हिंसा प्रभावित राज्यों की सहायता के लिए विशेष बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की योजना पर भी काम शुरू किया। सुरक्षा जरूरतों में आने वाले खचरे के लिए अलग से धनराशि जारी की। इस पूरे काम की निगरानी के लिए भी मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय में अलग डिवीजन बना दिया है। इसे वामपंथी उग्रवाद प्रभाग नाम दिया गया। वामपंथी उग्रवादियों का मुकाबला करने और राज्य पुलिस बलों की क्षमता को बढ़ाने के लिए राज्यों में इंडिया रिजर्व बटालियन का भी गठन किया गया है।

लगातार ऑपरेशन से माओवादियों और नक्सलियों के पांव उखड़ गए हैं। 2014-23 के बीच वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 52 फीसद से अधिक की कमी आई है। कुल मौतों में भी 69 फीसद की कमी आई है। सुरक्षा बलों के हताहतों की संख्या इस समय काफी कम है। यह बड़ी उपलब्धि है। विगत वर्षो में उग्रवादी गुटों के कई सदस्य आत्मसमर्पण करने को भी मजबूर हुए। केंद्र सरकार ने कई मर्तबा वामपंथी उग्रवादियों को हिंसा छोड़ने और बातचीत करने का प्रस्ताव दिया। उनके लिए केंद्र ने कई विकास परियोजनाएं भी शुरू करने की बात कही जिनमें वामपंथी उग्रवादग्रस्त क्षेत्र में 17,600 किमी. सड़कों को मंजूरी दी। ढाई सौ किलेबंद पुलिस स्टेशन स्थापित करने का काम भी  शुरू हुआ।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क आवश्यकता योजना को केंद्र सरकार ने आठ राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के 34 जिलों में लागू किया है। इस योजना में 5,362 किमी. सड़कों का निर्माण हो चुका है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अगस्त, 2014 में मोबाइल टावरों की स्थापना को भी मंजूरी दी गई। अब तक 4885 मोबाइल टावर लगाए गए हैं। दूसरे चरण में 2,542 मोबाइल टावर और लगाए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने वामपंथी उग्रवाद के पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे को 2017 में 5 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दिया था, और अब इसमें बढ़ोतरी करके 40 लाख कर दिया गया है, लेकिन नक्सली फिर भी नहीं मान रहे। अब उनके खिलाफ ‘पुलिस टेक्नोलॉजी मिशन’ शुरू हुआ है ताकि उन पर अंतिम प्रहार किया जाए। कांकेर मुठभेड़ उसी का हिस्सा है।

डॉ. रमेश ठाकुर


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